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जैनसम्प्रदायशिक्षा ॥ है इस लिये माता की स्थिति में धात्री (धाय) के द्वारा बालक का पोषण कराना ठीक नहीं है, हां यदि माता का शरीर दुर्बल हो अथवा दूध न आता हो अथवा पूरा ( काफी) दूध न आता हो तो वेशक अन्य कुछ उपाय न होने से बालकको सात
आठ महीने तक तो धाय के पास ही रख कर उसी के दूध से बालक का पालन पोषण करना चाहिये क्योंकि सात आठ महीने तक तो दूध के सिवाय बालक की और कोई
खुराक हो ही नहीं सकती है ॥ ८-धान्त्री के लक्षण-जहां तक हो सके धात्री अपने ग्रामकी और अपनी जाति की ही रखना चाहिये तथा उस में ये लक्षण देखने चाहिये कि वह अपने ही बालक के समान जीवित और नीरोग वालक वाली, मध्यम कद की, शान्त, सुशील, दृढ शरीर वाली, रोगरहित, सदाचारयुक्त तथा सद्गुणोंवाली होवे, यदि कदाचित् ऐसी धात्री न मिल सके तो सदा एक ही तनदुरुस्त गाय का ताजा दूध लेकर तथा दूध से आधा कुछ गर्म पानी और शकर को पूर्व कही हुई रीति के अनुसार मिलाकर बालक को पिलाना चाहिये तथा इस को भी दूध पिलाने के समयके अनुकूल ही नियमानुसार पिलाना चाहिये, दूध पिलाने में इस बात का भी खयाल रखना चाहिये कि वालक को तांबे और पीतल आदि धातु के वर्तन में दूध नहीं पिलाना चाहिये किन्तु मिट्टी अथवा काच के वर्तन में लेकर पिलाना चाहिये, किन्तु बालक के पीने के दूध को तो पहिले से ही उक्त वर्तन में ही रखना चाहिये, दूधको बहुत गर्म करके नहीं पिलाना चाहिये, बहुत सी स्त्रियां गाय भैस वा बकरी का दूध औट कर तथा उस में शक्कर इलायची और जायफल आदि डाल कर पिलाया करती हैं परन्तु ऐसा दूध छोटे बालक को मारी होने के कारण पचता नहीं है. इस लिये ऐसा दूध नहीं पिलाना चाहिये, वास्तव में तो बालक के लिये माता के दूध के समान और कोई खुराक नहीं है. इस लिये जब कोई उपाय न चले तब ही धाय रखनी चाहिये अथवा ऊपर लिखे
अनुसार मिश्रण दूध का सहारा रखना चाहिये । ९-खुरक-बालक को ताजी; हलकी; कुछ गर्म; रुचिके अनुकूल तथा पौष्टिक खुराक
देनी चाहिये तथा खुराक के साथ में हमेशा गाय का ताजा और खच्छ दूध मी देते रहना चाहिये, यदि अनाज की खुराक दी जावे तो उस में जरासा नमक डाल कर देनी चाहिये क्योंकि ऐसा करने से खुराक खादिष्ठ हो जाती है और हज़म भी जल्दी हो जाती है तथा इस से पेट में कीड़े भी कम पड़ते है, यदि वालक की रुचि हो तो दूध में थोड़ी सी मिठास आजावे इतनी शक्कर वा बतासे डाल देना चाहिये परन्तु दूध को बहुत मीठा कर नहीं पिलाना चाहिये क्योंकि बहुत मीठा कर पिलाने से वह पाचन शक्ति को मन्द करता है ।