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________________ १३५ तृतीय अध्याय ॥ जब वालक एक वर्ष का हो जावे और दाँत निकल आवै तव उसे क्रम २ से चावल, दाल खिचड़ी; स्वच्छ दही और मलाई आदि देना चाहिये परन्तु अन्न के साथ गाय का दूध देने में कमी नहीं चूकना चाहिये क्योंकि दूध में पोषण के सब आवश्यक पदार्थ स्थित हैं. इस लिये दूध के देने से बालक तनदुरुस्त और दृढ बन्धनोंवाला होता है, यदि दूध के देने से शौच ठीक न आवे तो उसमें थोड़ा सा पानी मिला कर देना चाहिये इस से शौच ठीक होता रहेगा। __ज्यों २ बालक की अवस्था बढती जावे त्यों २ दूध की खुराक भी वढाते जाना चाहिये क्योंकि ऐसा करने से बालक का तेज; बन्धान और बल बढ़ता रहता है, जब पालक करीब दो वर्ष का हो जावे तव दूध में पानी का मिलाना बन्द कर देना चाहिये, बालक को जो दूध दिया जावे वह ताजा और स्वच्छ देख के लेना चाहिये, दूध में पानी वा अन्य कुछ पदार्थ मिला हुआ नहीं होना चाहिये इस का पूरा खयाल रखना चाहिये क्योंकि खराव दूध बहुत हानि करता है, ज्यों २ वालक बड़ा होता जावे त्यो २ वह शाक तरकारी आदि ताजे पदार्थोंको खावे इसका प्रयत्न करना चाहिये, धीरे २ शाक आदि पदार्थो में नमक और मसाला डालकर वालक को खिलाने चाहिये, कभी २ रुचि के अनुकूल कुछ मेवा भी देनी चाहिये, बालक को कच्चे फल, कोयले और मिट्टी आदि हानिकारक पदार्थ नहीं खाने देना चाहिये, बालक को दिन भर में तीन बार खुराक देनी चाहिये परन्तु उसमें भी यह नियम रखना चाहिये कि प्रातःकाल में दूध और रोटी देना चाहिये, इस के बाद दूसरी वार चार घंटे के पीछे और तीसरी बार शामको आठ बजे के अन्दर २ कोई हलकी खुराक देनी चाहिये किन्तु इन तीन समयों के सिवाय यदि बालक वीच २ में खाना चाहे तो उस को नहीं खाने देना चाहिये, एक वार की खाई हुई खुराक जब पच जावे और मेदेको कुछ विश्रान्ति (आराम ) मिल जावे तव दूसरी वार खुराक देनी चाहिये, भूख से अधिक खूब डॅट कर भी नहीं खाने देना चाहिये क्योंकि जो बालक भूख से अधिक खूब हँट कर तथा वार वार खाता है तो वह खुराक ठीक रीति से हजम नहीं होती है और बालक रोगी हो जाता है, उसके हाथ पैर रस्सीके समान पतले और पेट मटकी के समान बड़ा हो जाता है, वालक को कमी २ अनार, द्राक्षा (दाख), सेव, वादाम, पिस्ते और केले आदि फलभी देते रहना चाहिये, उसको पानी स्वच्छ पीने को देना चाहिये, पीने के लिये प्रायः कुओं का पानी बहुत उत्तम होता है इसलिये वही पिलाना चाहिये, जिस पानी पर रजःकण (धूलके कण) तैरते हों अथवा जो अन्य बुरे पदार्थों से मिला हुआ हो वह पानी चालक को कभी नहीं पिलाना चाहिये क्योंकि इस प्रकार का पानी बड़ी अवस्था वालों की अपेक्षा वालक को अधिक हानि पहुंचाता है, स्वच्छ जल हो तो भी उसे दो तीन बार छान कर पीने के लिये देना चाहिये, शीत
SR No.010052
Book TitleJain Sampradaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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