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तृतीय अध्याय ॥
१३३ बालक को पहिले महीने में डेढ २ घण्टे, दूसरे महीने में दो २ घण्टे, तीसरे महीने में ढाई २ घण्टे और चौथे महीने में तीन २ घण्टे के पीछे दूध पिलाना चाहिये, इसी प्रकार से प्रत्येक महीने में आधे २ घण्टे का अन्तर बढ़ाने जाना चाहिये किन्तु जब बालक सात आठ महीने का हो जावे तब तीन चार घण्टे के पीछे दूध पिलाने का समय नियत कर लेना चाहिये।
बहुत सी स्त्रियां बारह वा चौदह महीने तक बालक को दूध पिलाती रहती हैं परन्तु ऐसा करना बालक को बहुत हानि पहुँचाता है क्योंकि जब बालक जन्मता है तब से लेकर सात आठ महीने तक स्त्री को ऋतुधर्म नहीं होता है इस लिये तब तक का ही दूध बहुत पुष्टिकारक होता है किन्तु जब स्त्री के ऋतुधर्म होने लगता है तब उस के दूध में विकार उत्पन्न हो जाता है इस लिये स्त्रियों को केवल आठ नौ महीने तक ही बालकों को दूध पिलाना चाहिये किन्तु आठ नौ महीने के पीछे दूध का पिलाना धीरे २ कम करके उसके साथ में अन्य खुराक देते रहना चाहिये, दूध पिलाने के वाद स्तन को पोंछ कर खच्छ कर लेने का नियम रखना चाहिये कि जिस से चांदे (छाले) न पड़ जावें ॥ ६-दूध पिलाने के समय हिफाज़त-बालक को दूध पिलाने के समय माता
प्रथम अपने मन में धीरज; उत्साह; शान्ति और आनन्द रख के बालक को देखे, फिर उस को हँसा कर खिलावे और अपने स्तन में से थोड़ा सा दूध निकाल देवे, तत्पश्चात् बालक के मस्तक पर हाथ रखके उस को दूध पिलाने, बालक को दूध पिलानेकी यही उत्तम रीति है, किन्तु बालक को मार कर, पटक कर, क्रोध में होकर, डरा कर अथवा तर्जना (डांट) देकर दूध नहीं पिलाना चाहिये क्योंकि जिस समय मन में शोक, भय, क्रोध और निराशा आदि दोष होते हैं उस समय माता का दूध विगड़ा हुआ होता है और वह दूध जब बालक के पीने में आता है तो वह दूध बालक को विष के समान हानि पहुंचाता है-इस लिये जब कभी उक्त बातों का प्रसंग होवे उस समय बालक को दूध कभी नही पिलाना चाहिये किन्तु जब ऊपर लिखे अनुसार मन अत्यन्त आनन्दित हो उस समय पिलाना चाहिये, इसी तरह माता को अपनी रोगावस्था में भी बालक को अपना दूध नहीं पिलाना चाहिये क्योंकि वह दूध
भी बालक को हानि पहुंचाता है। ७-पूरा दूध न होने पर कर्तव्य उपाय-जहां तक हो सके वहां तक तो वालक
को माता के दूध से ही रखना उत्तम है क्योंकि माता का स्नेह बालक पर अपूर्व होता १-क्योंकि माता की उत्साह शान्ति, और आनन्द से भरी हुई दृष्टिको देखकर वालक भी हर्षित होगा।
२-क्योंकि दूध के अग्रभाग मे दूध का विकार जमा रहता है इसलिये पिलाने से प्रथम खनमेंसे कुछ बूध निकालकर तव वालक को पिलाना चाहिये ।