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________________ तृतीय अध्याय ॥ एक मास के पीछे गर्भिणी स्त्री के जी मचलाना और वमन (उलटियां) प्रातःकाल में होने लगते हैं, यद्यपि रजोदर्शन के बंद होने की खबर तो एक.मास में पड़ती है, परन्तु जी मचलाना और वमन तो बहुतसी स्त्रियों के एक मास से भी पहिले होने लगते हैं तथा बहुत सी स्त्रियों के मास वा डेढ मास के पीछे होते हैं और ये (मोल और वमन) एक वा दो मासतक जारी रह कर आप ही बंद हो जाते हैं परन्तु कभी २ किसी २ स्त्री के पांच सात मासतक भी बने रहते हैं तथा पीछे शान्त हो जाते हैं। गर्भिणी स्त्री को जो वमन होता है वह दूसरे वमन के समान कष्ट नहीं देता है इस लिये उस की निवृत्ति के लिये कुछ ओषधि लेने की आवश्यकता नहीं है, हां यदि उस वमन से किसी स्त्री को कुछ विशेष कप्ट मालम हो तो उसका कोई साधारण उपाय कर लेना चाहिये। जिस गर्मिणी स्त्री को ये मोल (जीम चलाना) और वमन होते हैं उसको प्रसूत के समय में कम संकट होता है, इस के अतिरिक्त गर्भिणी स्त्री के मुख में थूक का आना गर्भस्थिति से थोड़े समय में ही होने लगता है तथा थोड़े समयतक रह कर आप ही वन्द हो जाता है, धीरे २ स्तनों के मुख के आस पास का सब भाग पहिले फीका और पीछे श्याम हो जाता है, स्तनों पर पसीना आता है, प्रथम स्तन दावने से कुछ पानी के समान पदार्थ निकलता है परन्तु थोड़े दिन के बाद दूध निकलने लगता है । गर्मिणी स्त्री का दोहद ।।। तीसरे अथवा चौथे मास में गर्भिणी स्त्री के दोहद उत्पन्न होता है अर्थात् मिन्न २ विषयों की तरफ उस की अभिलाषा होती है, इस का कारण यह है कि, दिमाग (मगज़) और गर्माशय के ज्ञानतन्तुओं का अति निकट सम्बन्ध है इस लिये गर्भाशय का प्रभाव दिमाग पर होता है, उसी प्रभाव के द्वारा गर्भिणी स्त्री की मिन्न २ वस्तुओं पर रुचि चलती है, कभी २ तो ऐसा भी देखा गया है कि उस का मन किसी अपूर्व ही वस्तु के खाने को चलता है कि जिस के लिये पहिले कमी इच्छा भी नहीं हुई थी, कमी २ ऐसा भी होता है कि-जिस वस्तु में कुछ भी सुगन्धि न हो उस में भी उस को सुगन्धि मालम होती है अर्थात् बेर, इमली, राख, धूल, कंकड, कोयला और मिट्टी आदि में भी कमी २ उसको सुगन्धि मालूम होती है तथा इन के खाने के लिये उस का मन ललचाया करता है, किसी २ स्त्री का मन अच्छे २ वस्त्रों के पहरने के लिये चलता है, किसी २ का मन अच्छी २ बातों के करने तथा सुनने के लिये चलता है तथा किसी २ का मन उत्तम २ पदार्थों के देखने के लिये चला करता है। -परन्तु इस का नियम नहीं है कि तीसरे अथवा बौथे मास में ही दोहद स्त्पन्न हो, क्योंकि कई त्रियों के उक्त समय से एक आध मास पहिले वा पीछे भी दोहद का उत्पन्न होना देखा जाता है।
SR No.010052
Book TitleJain Sampradaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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