________________
९८
जैनसम्प्रदायशिक्षा ॥ प्राप्त नहीं होती है, स्त्रीधर्म और नीति का उपदेश नहीं मिलता है तथा उन के कोमल हृदय में सती चरित्रों के महत्त्व की मोहर नहीं लगाई जाती है, जब ऐसा अन्धेर चल रहा है तो भला साध्वी स्त्रियों के होने की आशा ही कैसे की जा सकती है तथा स्त्रियां अपने धर्म को समझ कर यथार्थ मार्ग पर कैसे चल सकती हैं ! इस लिये हे गृहस्थो ! यदि तुम अपनी पुत्रियों को श्रेष्ठ और साध्वी बनाने की इच्छा रखते हो तो बाल्यावस्था से ही प्राचीन पद्धति के अनुसार सत्य शिक्षा, सुसंगति, सदुपदेश और सतीचरित्रादि के महत्त्व से उनके अन्तःकरण को रंगित करो ( रँग दो), पीछे देखो उस का क्या प्रभाव होता है, जब इस प्रकार से सद्व्यवहार किया जायगा तो शीघ्र ही तुम्हारी पुत्रियों के हृदयों में असती स्त्रियों के कुत्सित आचरण पर ग्लानि उत्पन्न हो जायगी और वे इस प्रकार से दुराचारों से दूर भागेंगी जैसे मयूर ( मोर ) को देखकर सर्प ( सांप ) दूर भाग जाता है और इस प्रकार का भाव उन के हृदय में उत्पन्न होते ही वे बालायें पवित्र पातिव्रत धर्म का पालन करना सीखकर आपत्तियों का उल्लंघन कर अपने सत्य व्रत में अचल रहेंगी, तब ही वे लोभ लालच में न फंस कर उस को तृण समान तुच्छ जान कर अपने हृदयसे दूर कर उसकी तरफ दृष्टि भी न डालेंगी, इस लिये अपनी प्यारी पुत्रियों बहिनों
और धर्मपनियों को पूर्वोक्त रीति से सुशिक्षित करो, जिस से वे भविष्यत् में सद् वर्ताव कर पतिव्रतारूप उत्कृष्ट पद को प्राप्त कर अपने धर्म को यथार्थ रीतिसे पालने में तत्पर होवें कि जिस से इस पवित्र देशकी निवासिनी आर्य महिलाओं का सदा विजय हो कर इस देश का सर्वदा कल्याण हो ॥
पति के परदेश होनेपर पतिव्रता के नियम-॥ जो स्त्री पतिपर पूर्ण प्रेम रखनेवाली तथा पतिव्रता है उस के लिये यद्यपि पति के परदेश में जाने से वियोगजन्य दुःख असह्य है परन्तु कारण वश इस संसार में मनुष्यों को परदेश में जाना ही पड़ता है, इसलिये उस दशा में समझदार स्त्रियों को उचित है किजब अपना पति किसी कारण से पर देश जावे तब यदि उसकी आज्ञा हो तो साथ जावे
और उस की इच्छा के अनुसार विदेश में भी गृह के समान अहर्निश बर्ताव करे, परन्तु यदि साथ जाने के लिये पति की आज्ञा न हो अथवा अन्य किसी कारण से उस के साथ जानेका अवसर न मिले तो अपने पति को किसी प्रकार जाने से नहीं रोकना चाहिये तथा जिस समय पति जाने को उधत (तैयार ) हो उस समय अशुभ सूचक वचन भी नहीं बोलने चाहिये और न रुदन करना चाहिये. किन्तु उस की आज्ञा के अनुसार अपनी सासु श्वशुर आदि गुरु जनों के आधीन रह कर उन्हीं के पास रहना चाहिये, सासु ननंद आदि प्रिया सगी स्त्री के पास सोना चाहिये, जब तक पति वापिस न आवे तब तक