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तृतीय अध्याय ||
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स्त्री का पातिव्रत धर्म ही परम दैवत, रूप, तेज और अलौकिक शक्ति होती है, इसी अलौकिक शक्ति से उस को अखण्ड और अनन्त सुख प्राप्त हो सकता है तथा इसी शक्ति के प्रभावसे सती स्त्री के सामने कुदृष्टि करने वाले पुरुष का सर्व नाश होजाता है ।
इस सतीत्व धर्म से केवल सती स्त्री की ही महिमा होती हो यह बात नहीं है किन्तु सती स्त्रीके माता पिता भी पवित्र गिने जाकर धन्यवाद और महिमा के योग्य होते है, न केवल इतना ही किन्तु सती स्त्री दोनों कुलों को तार देती है, जैसे तारागणों में चन्द्रमा शोभा देता है इसी प्रकार से सब स्त्रियों में सती स्त्री शोभा देती है, सती स्त्री ही पति के कठोर हृदय को भी कोमल कर देती है तथा उस के तीक्ष्ण कोष और शोक को शान्त कर देती है ।
पतित्रता की प्रेम सहित रीति, मधुरता, नम्रता, स्नेह और उस के धैर्य के वचनामृत रोग समय में ओषधिका काम निकालते है, पतिव्रता स्त्री अपनी अच्छी समझ, तत्परता, दयालुता, उद्योग और सावधानता से आते हुए विघ्नोंको रोक कर अपना कार्य सिद्ध करलेती है, पत्तित्रता स्त्री ही पति और कुटुम्बकी शोभा में विशेषता करती है, पतिव्रता स्त्री के द्वारा ही उत्तम शिक्षा पाकर बालक इस संसार में मानवरत्न हो जाते हैं, इसी लिये ऐसी साध्वी स्त्रियों को रत्नगर्भा कहते हैं, वास्तव में ऐसी रत्नगर्भा स्त्रियां ही देश के उदय होने में साघनरूप है, देखो। ऐसी माताओं से ही सर्वज्ञ महाबीर, गौतम आदि ग्यारह गणधर, भद्रबाहु, जम्बू, हेमचन्द्र, जिन दत्त सूरि, युधिष्ठिर आदि पांच पाण्डव, रामचन्द्र, कृष्ण, श्रेणिक, अभयकुमार, भोज, विक्रम और शालिवाहन आदि महापुरुष तथा सीता, द्रौपदी और राजेमती आदि जगत्प्रसिद्ध साध्वी स्त्रियां उत्पन्न हुई हैं, अहो पतिव्रता साध्वी स्त्रियों का प्रताप ही अलौकिक है, साध्वी स्त्रियों के प्रताप से क्या नहीं हो सकता है अर्थात् सब कुछ हो सकता है, जिन के सतीत्वं के प्रताप के आगे देवता भी उनके आधीन हो जाते है तो मनुष्यकी क्या गिनती है ।
प्राचीन समय में इस देश में वल बुद्धि और मति आदि अनेक बातों में आर्य महिलाओं ने अनेक समयों में पुरुषों के साथ समानता कर दिखाई है, जिस के अनेक उदाहरण इतिहासों में दर्ज है और उन को इस समय में बहुत से लोग जानते हैं, परन्तु हतभाग्य है इस आर्यावर्त्त देश की आर्य तरुणियों का जो कि इस समय सतीत्व का वह अपूर्व माहात्म्य और गौरव कम होगया है, इसका कारण केवल यही है कि- वैसी सती साध्वी स्त्रियां अब नहीं देखी जाती हैं और यह केवल इसी लिये ऐसा है कि वर्तमान में स्त्रियों को उत्तम शिक्षा, सत्संगति, सदुपदेश, धर्म और नीति आदि सद् गुणों की शिक्षा नहीं दी जाती है, उनको सच्छास्त्रों का ज्ञान नहीं मिलता है, उन को श्रेष्ठ साध्वी स्त्रियोंकी संगति
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