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________________ ७ जैनसम्प्रदायशिक्षा ॥ 'धुई धुवो ना सञ्चरे, मेहिले पवन न जाय ॥ झीवर विलखो क्यूँ फिरै, कहु चेला किण दाय ॥२८॥ गुरुजी जाली नहीं । घड़ो झरन्तो ना रहे, पीदै रोवै बाल ॥ सासु बैठि बहु पारुस, कहु चेला किण दाय ॥ २९ ॥ गुरुजी सारो नहीं ॥ कपड़ो पोते न पैकहै, मूंज मेल नहिँ खाय ॥ चोपरि रूट्यो क्यूं फिरै, कहु चेला किण दाय ॥ ३०॥ गुरुजी कूटयो नहीं । संको पीपल खरेहरो, कलियां हुई विणासे ॥ 'होको भूधी क्यूं पड्यो, कहु चेला किण दाय ॥ ३१ ॥ गुरुजी पान नहीं ॥ बांईज 'डोलै बहु वुलै, लावै सरै के जाय ॥ आग भभूको क्यूं करै, कहु चेला किण दाय ॥ ३२ ।। गुरुजी दौबी नहीं ॥ गाड़ी पड़ी उजाड़े में, पैणगट ठौंली जाय॥ कांटो लागो पांव में, कहु चेला किण दाय ॥ ३३ ॥ गुरुजी जोड़ी नहीं ॥ घोड़ो तिणो न चौखवै, चाकर रूठो जाय ॥ पिलंग थकी धर पोदजै, कहु चेला किण दाय ॥ ३४ ॥ गुरुजी पायो नहीं। १-आग जलाने का गड़ा ॥ २-धु ॥ ३-निकलता ॥ ४-महल ॥ ५-हवा ॥ ६-मछली पकडनेवाला ॥ ७-व्याकुल ॥ ८-जलाई हुई, खिडकी (जाली) और जाल ॥ ९क्षरता हुआ ॥ १०-छोटी माची॥ ११-चालक ॥ १२-वह ॥ १३-परोसती है ॥ १४-पका, नीरोग और अधिकार ॥ १५-गाढापन ॥ १६-पकडता है ॥ १५-एक घास ॥ १८-रूठा हुआ ॥ १९-कूटा हुआ (दो में) और मारा हुआ ॥ २०-सूखा हुआ॥ २१-खड़खडाता है ॥ २३-नष्ट, नाश ।। २३-हुका ॥ २४-उलटा ।। २५-पत्ते (दो में) और तमाखू ॥ २६-बाड़ ॥ २५-हिलती है ॥ २८-बहुत ॥ २९-बोलती है । ३०-रस्सा ॥ ३१-बहुत तेजी के साथ ॥ -३२-भभकना ॥ ३३-दवाई हुई ( तीनों में समान जानना चाहिये)॥ ३४-जंगल ॥ ३५-पनिहारी ॥ ३६-खाली ॥ ३५-जोडी का बैल (दो में) और जूते॥ ३८-घास ॥ ३९-खाता है ॥ ४०-नौकर ॥ ४१-क्रुद्ध ॥ ४२-पलग ॥ ४३-होने पर भी॥ ४४-जमीन ॥ ४५-सोता है । ४६-पिलाया हुआ, पाया हुआ और चार पाई का पागा ॥
SR No.010052
Book TitleJain Sampradaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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