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________________ ७७ द्वितीय अध्याय ।। खेत णठो किण कारण, चोद घर घर जाय ॥ गुंल मुंहगो किणविध हुँवो, कहु चेला किण दाय ॥ २१॥ गुरुजी वोड़ नहीं ॥ अमल अटका गैल गयो, दौड़ी वैधती जाय ॥ चांभी अनन न वाचियो, कहु चेला किण दाय ॥ २२ ॥ गुरुजी नाई नहीं ॥ पन्थ टाऊ ना बैंहै, सैयण पुहँचो जाय ॥ ईस गोरज्या हॉलैणों, कहु चेला किण दाय ॥ २३ ॥ गुरुजी बोलवो नहीं ॥ वनराजा रो नाम सैंण, पैंटो छोड़ घर जाय॥ लिखता लेखेण क्यों तेजी, कहु चेला किण दाय ॥२४॥ गुरुजी सही नहीं॥ मोती मोटो मोल कम, सरवर पीहँ न थीय ॥ रावत भागो रौड़ में, कहु चेला किण दाय ॥ २५ ॥ गुरुजी पीणी नहीं ॥ पान सडै घोड़ो अंडे, विद्या वीर्सेर जाय ॥ रोटो जलै अंगीर में, कहु चेला किण दाय ॥ २६ ॥ गुरुजी फेयो नहीं । दूध फाण्यो ऊंफण्यो, बच्छै चूंगी गाय ॥ मिनकी मौखण ले गई, कहु चेला किण दाय ॥२७॥ गुरुजी देख्यो नहीं ॥ १-नष्ट हुभा ॥ २-किस ॥ ३-कारण से ॥ ४-चतुष्पद ॥ ५-गुड ॥ ६-वेज, मॅहगा ॥ ७-किस तरह से ॥ हुआ ॥ ९-बाड, वाड और आमद ॥ १०-अफीम ॥ ११-गला ॥ १२डाढी॥ १३-बढती जाती है । १४-हल की लीक ॥ १५-अन ॥ १६-बचा हुआ ॥ १५-पहिले दो में नाई, तीसरे में हलकी मँगली ॥ १८-स्खा ॥ १९-यात्री ॥ २०-चलता है ॥ २१-सम्बन्धी। १२-लौट गया ॥ २३-महादेव ॥ २४-पार्वती ॥ २५-चलना ॥ २६-बोलनेवाला, सत्कार और वुलावा ॥ २५-सिंह ॥ २८-का॥ २९- सुनाई देता है ॥ ३०-जागीर ॥ ३१-लिखते हुए। ३२-कलम ॥ ३३-छोड दी॥ ३४-सेही (जंतुविशेष); मोहर और स्याही ॥ ३५-बड़ा ॥ ३६कीमत ॥ ३५-तालाव ॥ ३८-भीड ॥ ३९-होती है ॥ ४०-नामविशेष ॥ ४१-लड़ाई ॥ ४२-आव, जल और तेज ॥ ४३-अडता है ॥ ४४-भूल ॥ ४५-रोटी ॥ ४६-अग्नि ॥ ४७फेरना यानी सभालना (तीनों में समान ) ॥ ४४-उफान ॥ ४९-आया ॥ ५०-बछड़ा ॥ ५१पी ली॥ ५२-बिल्ली ॥ ५३-मक्खन ॥ ५४-देखा नही (तीनों में समान) ॥
SR No.010052
Book TitleJain Sampradaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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