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द्वितीय अध्याय ॥ घोड़ा घोड़ी ना छिवे, चोर ठयेली जाय ॥ कामण कन्त जु परिहरै, कहु चेला किण दाय ॥ ७॥
गुरुजी जांग नहीं ॥ घोड़े मारग छोडियो, हिरण फडाँके जाय ॥ माली तो बिलखो फिरै, कहु चेला किण दाय ॥८॥
गुरुजी वोग नहीं । पड़ी कवाण न पाले, कामणि ही छिटकायें । कवि बूझंतां खीडियो, कहु चेला किण दाय ॥९॥
गुरुजी गुंण नहीं ॥ अरट न बाजै पार्टडी, वालद प्यासो हि जाय ॥ धंवल न खंचे गौडलो, कहु चेला किण दाय ॥१०॥
गुरुजी वुहवो नहीं ॥ नारी पुरुष न आदरै, तसकर बांध्यो जाय ॥ तेजी ताजैणणो खमैं, कहु चेला किण दाय॥११॥
गुरुजी तेजें नहीं ॥ भोजन खाद न ऊँपजो, संगो रिसायां जाय ॥ कन्ते कॉमण परिहरी, कहु चेला किण दाय ॥१२॥
गुरुजी रस नहीं ॥ वैर्दै मौन पायो नहीं, सींगंण नहिँ सुलजाय ॥ कन्ते कामण परिहरी, कहु चेला किण दाय ॥ १३ ॥
गुरुजी गुण नहीं ॥
१-छूता है ॥ २-धीसता हुमा ॥ ३-बी ॥ ४-छोडती है ॥ ५-कामोद्दीपन, जागता हुआ और कामोद्दीपन ॥ ६-छोड दिया ॥ ७-फलाग मारकर ॥ -व्याकुल ॥ ९-लगाम, वाग (सिंघ) और घाग अर्थात् बगीचा ॥ १०-कमान ॥ ११-चढती है ॥ १२-स्त्री ॥ १३-दूर करती है ॥ १४-शायर ॥ १५-पूछने पर ॥ १६-रुष्ट हुआ ॥ १५-डोरी और 'गुण' (गुण पिछले दो में जानना)॥ १८-अरहट यंत्र॥ १९-पटड़ी॥ २०-वैल ॥ २१-खींचता है। २२-गाडी ॥ २३-चला (तीनो में समान)॥ २४-स्त्री ॥ २५-चोर ॥ २६-घोडा॥ २४ चाबुक ।। २८-सहता है ॥ २९-तेज (तीनों में समान ही जानो)॥ ३०-जायका ।। ३१-पै. दा हुआ॥ ३२-सवधी ॥ ३३-गुस्से में होकर ॥ ३४-खामी ॥ ३५-स्त्री ॥ ३६-छोड़ दी। ३५-नमक, प्रीति और रति का सुख ॥ ३८-हकीम ॥ ३९-इनत ॥ ४०-तिल ॥ ४१ नहीं । ४२-सुलता है॥ ४३-पहिले और तीसरे मे गुण दूसरे में घुन (जन्तु)॥