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________________ द्वितीय अध्याय || मैथुन गुप्तरु धृष्टता, अवसर आलय देह || अप्रमाद विश्वास तज, पांच काग गुण लेह ॥ १०० ॥ गुप्तरीति से (अति एकान्त में ) स्त्री से भोग करना, धृष्टता ( टिठाई ), अवसर पाकर घर बनाना, गाफिल न रहना और किसी का भी विश्वास न करना, ये पांच गुण कौए से सीखने चाहिये ॥ १०० ॥ ४९ १०९ ॥ बहुभुक थोड़े तुष्टता, सुखनिद्रा झट जाग ॥ स्वामिभक्ति अरु शूरता, षट गुण श्वान सुपाग ॥ अधिक खानेवाला होकर भी थोड़ा ही मिलने पर सन्तोष करना, सुख से नींद लेना परन्तु तनिक आवाज होने पर तुरन्त सचेत हो जाना, स्वामि में भक्ति ( जिस का अन्न जल खावे पीवे उस की भक्ति ) रखना और अपने कर्तव्य में शूर वीर होना, ये छः गुण कुत्ते से सीखने चाहियें ॥ १०१ ॥ थाक्यो हू ढोवै सदा, शीत उष्ण नहिँ चीन्ह ॥ सदा सुखी मातो रहै, रासभशिक्षा तीन्ह ॥ १०२ ॥ अत्यन्त थक जाने पर भी बोझ को ढोते ही रहना ( परिश्रम में लगे ही रहना ) तथा गर्मी और सर्दी पर दृष्टि न देना और सदा सुखी व मैस्त रहना, ये तीन गुण रासभ ( गधे ) से सीखने चाहियें ॥ १०२ ॥ जो नर धारण करत हैं, यह उत्तम गुण बीस ॥ ॥ १०३ ॥ होय विजय सब काम में, तिन्ह छलिया नहिँ दीस ये बीस गुण जो शिक्षा के कहे है- इन गुणों को जो मनुष्य धारण कामों में सदा विजयी होगा ( उस के सब कार्य सिद्ध होंगे ) और उस पुरुष को कोई भी नहीं छल सकेगा ॥ १०३ ॥ करेगा वह सब अर्थनाश मनताप को, अरु कुचरित निज गेहु ॥ नीच वचन' अपमान ये, धीर प्रकाशि न देहु ॥ १०४ ॥ धन का नाश, मन का दुःख ( फिक्र ), अपने घर के खोटे चरित्र, नीच का कहा हुआ वचन और अपमान, इतनी बातों को बुद्धिमान् पुरुष कभी प्रकाशित न करे ॥ १०४ ॥ धन अरु धान्य प्रयोग में, विद्या संग्रह कार ॥ आहाररु व्यवहार में, लज्जा अवस निवार ॥ १०५ ॥ १ ~~ क्योकि नीतिशास्त्र में किसी का भी विश्वास न करने का उपदेश दिया गया है, देखो पिछला ६९ वां दोहा ॥ २ - अर्थात् चिन्ता को अपने पास न आने देना, क्योकि चिन्ता अत्यन्त दुखदायिनी होती है ॥ ३—क्योकि इन बातों को प्रकाशित करने से मनुष्य का उलटा उपहास होता है तथा लघुता प्रकट होती है ॥ ७
SR No.010052
Book TitleJain Sampradaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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