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जैनसम्प्रदायशिक्षा ॥ खोटे राजा का राज्य होने से राजा का न होना ही अच्छा है, दुष्ट मित्र की मित्रता होने से मित्र का न होना ही अच्छा है, कुभायों के होने से स्त्री का न होना ही अच्छा है और खराब चेले के होने से चेले का न होना ही अच्छा है ॥ ९४ ॥
राज कुराज प्रजा न सुख, नहिं कुमित्र रति राग ॥
नहिँ कुदार सुख गेह को, नहिँ कुशिष्य यशभाग ॥ ९५॥ दुष्ट राजा के राज्य में प्रजा को सुख नहीं होता, कुमित्र से आनंद नहीं होता, कुभार्या से घर का सुख नहीं होता और आज्ञा को न माननेवाले शिष्य से गुरु को यश नहीं मिलता है ॥ ९५ ॥
इक इक वक अरु सिंघ से, कुकुट से पुनि चार ॥
पांच काग अरु श्वान षट्, खर निहुँ शिक्षा धार ॥ ९६ ॥ बगुले और सिंह से एक एक गुण सीखना चाहिये, कुक्कुट (मुर्गे ) से चार गुण सीखने चाहिये, कौए से पांच गुण सीखने चाहिये, कुत्ते से छः गुण सीखने चाहिये और गर्दन (गदहे) से तीन गुण सीखने चाहिये ॥ ९६ ।।
छोटे मोटे काज को, साहस कर के यार ॥
जैसे तैसे साधिये, सिंघ सीख इक धार ॥ ९७॥ हे मित्र सिंह से यह एक शिक्षा लेनी चाहिये कि कोई भी छोटा या बड़ा काम करना हो उस में साहस (हिम्मत ) रख कर जैसे बने वैसे उस काम को सिद्ध करना चाहिये, जैसे कि सिंह शिकार के समय अपनी पूर्ण शक्ति को काम में लाता है ॥ ९७ ॥
करि संयम इन्द्रीन को, पण्डित बकुल समान ।
देश काल बल जानि के, कारज करै सुजान ॥ ९८॥ बगुले से यह एक शिक्षा लेनी चाहिये कि-चतुर पुरुष अपनी इन्द्रियों को रोक कर बगुले के समान एकाग्र ध्यान कर तथा देश और काल का विचार कर अपने सब कार्यों को सिद्ध करे ॥ ९८ ॥
समर प्रबल अति रति प्रबल, नित प्रति उठत सवार ॥
खाय अशन सो बांटि के, ये कुकुट गुन चार ॥ ९९॥ लड़ाई में प्रबलता रखना (भागना नहीं), रति में अति प्रबलता रखना, प्रतिदिन तड़के उठना और भोजन बांट के खाना, ये चार गुण कुक्कुट से सीखने चाहिये ॥ ९९ ॥
१-गुणग्राही होना सत्पुरुषों का खाभाविक धर्म है अतः इन चक आदि से इन गुणो के ग्रहण करने का उपदेश किया गया है।