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________________ पश्चम अध्याय // 755 ३१-आम को चलते समय यदि हाथी दाहिने दाँत के ऊपर सूंड को रक्खे हुए अथवा सूड को उछालता हुआ सामने आता दीख पड़े तो सुख; लाभ और सन्तोष होता है तथा बाई तरफ वा अन्य किसी तरफ सँड़ को किये हुए दीखे तो सामान्य फल होता है, इस के अतिरिक्त हाथी का सामने मिलना अच्छा होता है। ३२-यदि घोड़ा अगले दाहिने पैर से पृथिवी को खोदता हुआ वा दाँत से दाहिने अंग को खुजलाता हुआ दीखे तो सर्व कार्यों की सिद्धि होती है, यदि वायें पैर को पसारे हुए दीख पड़े तो क्लेश होता है तथा यदि सामने मिल जावे तो शुभकारी होता है। ३३-ऊँट का वाई तरफ बोलना अच्छा होता है, दाहिनी तरफ बोलना केशकारी होता है, यदि सॉडनी सामने मिले तो शुभ होती है। ३४-यदि चलते समय बैल बॉयें सीग से वा बॉयें पैर से धरती को खोदता हुआ दीख पड़े तो अच्छा होता है अर्थात् इस से सुख और लाभ होता है, यदि दाहिने अंग से पृथिवी को खोदता हुआ दीख पड़े तो बुरा होता है, यदि बैल और भैंसा इकडे खड़े हुए दीख पड़े तो अशुभ होता है, ऐसी दशा में ग्राम को नहीं जाना चाहिये, यदि जावेगा तो प्राणों का सन्देह होगा, यदि उकराता (बडूकता) हुआ सॉड़ सामने दीख पड़े तो अच्छा होता है। ३५-यदि गाय बाई तरफ शब्द करती हुई अथवा बछड़े को दूध पिलाती हुई दीख पड़े तो लाम; सुख और सन्तोष होता है तथा यदि पिछली रात को गाय बोले तो क्लेश उत्पन्न होता है। ३६-यदि गधा बाई तरफ को जावे तो सुख और सन्तोष होता है, पीछे की तरफ वा दाहिनी तरफ को जावे तो क्लेश होता है, यदि दो गधे परस्पर में कन्धे को खुजलावें, वा दाँतों को दिखावें, वा इन्द्रिय को तेज करें, वा बाई तरफ को जावे तो बहुत लाम और सुख होता है, यदि गधा शिर को धुने वा राख में लोटे अथवा परस्पर में लड़ता हुना दीख पड़े तो जैश और क्लेशकारी होता है तथा यदि चलते समय गधा बाई तरफ : बोले और घुसते समय दाहिनी तरफ वोले तो शुभकारी होता है। ३७-आम को चलते समय बन्दर का दाहिनी तरफ मिलना अच्छा होता है तथा मध्याह के पश्चात् वाई तरफ मिलना अच्छा होता है। ३८-यदि कुत्ता दाहिनी कोख को चाटता हुआ दीख पड़े अथवा मुख में किसी भक्ष्य पदार्थ को लिये हुए सामने मिले तो सुख; कार्य की सिद्धि और बहुत लाभ होता है, फले और फूले हुए वृक्ष के नीचे बाड़ी में; नीली क्यारियों में; नीले तिनकों पर द्वार की ईंट पर तथा धान्य की राशि पर यदि कुत्ता पेशाव करता हुआ दीख पड़े तो वड़ा लाम और सुख होता है, यदि बाई तरफ को उतरे वा जाँप, पेट और हृदय को दाहिने पिछले
SR No.010052
Book TitleJain Sampradaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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