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________________ जैनसम्प्रदायशिक्षा || शैल शैल माणिक नहीं, मोती गज गज नाहिं ॥ वन वन में चन्दन नहीं, साधु न सब थल माहि ॥ ७३ ॥ सब पर्वतों पर माणिक पैदा नहीं होता है, सब हाथियों के कुम्भस्थल ( मस्तक ) में मोती नही निकलते हैं, सव वनों में चन्दन के वृक्ष नहीं होते हैं और सब स्थानों में साधुं नहीं मिलते हैं ॥ ७३ ॥ पुत्रहि सिखवै शील को, बुध जन नाना रीति ॥ कुल में पूजित होत है, शीलसहित जो नीति ॥ ७४ ॥ ४० B बुद्धिमान् लोगों को उचित है कि अपने लड़कों को नाना भांति की सुशीलता में लगावें, क्योंकि नीति के जानने वाले यदि शीलवान् हों तो कुल में पूजित होते हैं ॥ ७४ ॥ ते माता पितु शत्रु सम, सुत न पढ़ावै जौन ॥ राजहंस बिच वकसरिस, सभा न शोभत तौन ॥ ७५ ॥ माता और पिता बैरी हैं जिन्हों ने लाड़ के वश में होकर अपने बालक को नहीं पढ़ाया, इस कारण वह बालक सभा में जाकर शोभा नहीं पाता है, जैसे हंसों की पंक्ति में बगुला शोभा को नहीं पाता है ॥ ७५ ॥ पुत्र लाड़ से दोष बहु, ताड़न सें बहु सार ॥ यातें सुत अरु शिष्य को, ताड़न ही निरधार ॥ ७६ ॥ पुत्रों का लाड़ करने से बहुत दोष ( अवगुण ) होते हैं और ताड़न ( धमकाने ) से बहुत लाभ होता है, इस लिये पुत्र और शिष्य का सदा ताड़न करना ही उचित है ॥ ७६ ॥ पांच बरस सुत लाड़ कर, दश लौं ताड़न देहु ॥ बरस सोलवें लागते, कर सुत मित्र सनेहु ॥ ७७ ॥ पांच वर्ष तक पुत्र का ( खिलाने पिलाने आदि के द्वारा ) लाड़ करना चाहिये, दश वर्ष तक ताड़न करना चाहिये अर्थात् त्रास देकर विद्या पढ़ानी चाहिये - परन्तु जब सोलहवां वर्ष लगे तब पुत्र को मित्र के समान समझ कर सब बर्ताव करना चाहिये ॥ ७७ ॥ रूप भयो यौवन भयो, कुल हू में अनुकूल ॥ विन विद्या शोभै नहीं, गन्धहीन ज्यों फूल ॥ ७८ ॥ रूप तथा यौवनवाला हो और बड़े कुल में उत्पन्न भी हुआ हो तथापि विद्यारहित पुरुष शोभा नहीं पाता है, जैसे-- गन्ध से हीन होने से टेसू ( केसूले ) का फूल ॥ ७८ ॥ १ - साधु नाम सत्पुरुष का है ॥ २-शील का लक्षण ९१ वें दोहे की व्याख्या में देखो ! ३- तात्पर्य यह है कि - सोलह वर्ष के पीछे ताडन कर विद्या पढ़ाने का समय नहीं रहता है क्योंकि सोलह वर्ष तक में सब इन्द्रियां और मन आदि परिपक होकर जैसा संस्कार हृदय में जम जाता है, उस का मिटना अति कठिन होता है, जैसे कि बडे वृक्ष की शाखा सुदृढ़ होने से नहीं नमाई जा सकती है ।
SR No.010052
Book TitleJain Sampradaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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