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जैनसम्प्रदायशिक्षा ॥ लोग नहीं जान सकते हैं और न उस लेख को कोई मिटा सकता है, चाहें पण्डित और राजा कोई भी कितना ही यन क्यों न करे ॥ ५० ॥
वन रण वैरी अग्नि जल, पर्वत शिर अरु शुन्य ॥
सुप्त प्रमत अरु विषम थल, रक्षक पूरब पुन्य ॥५१॥ जंगल में, लड़ाई में, दुश्मनों के सामने, अमि लगने पर, जल में, पर्वत पर, शून्य स्थान में, निद्रा में, प्रमाद की अवस्था में और विषम स्थान में, इतने स्थानों में मनुष्य का किया हुआ पूर्व जन्म का अच्छा कर्म ही रक्षा करता है ।। ५१ ॥
मूर्ख शिष्य उपदेश करि, दारा दुष्ट बसाय ॥
वैरी को विश्वास करि, पण्डित हू दुख पाय ॥५२॥ मूर्ख शिष्य को सिखला कर, दुष्ट स्त्री को रखकर और शत्रु का विश्वास कर पण्डित पुरुष भी दुःखी होता है ॥ ५२ ॥
दुष्ट भारजा मित्र शठ, उत्तरदायक भृत्य ॥
सर्पसहित घर वास ये, निश्चय जानो मृत्य ॥५३॥ दुष्ट स्त्री, धूर्त मित्र, उत्तर देनेवाला नौकर और जिस मकान में सर्प रहता हो वहां का निवास, ये सब बातें मृत्युस्वरूप हैं, अर्थात् इन बातों से कभी न कभी मनुष्य की मृत्यु ही होनी सम्भव है ॥ ५३ ॥
विपति हेत रखिये धनहि, धन ते रखिये नारि ॥
धन अरु दारा दुहुँन ते, आतम नित्य विचारि ॥५४॥ विपत्तिसमय के लिये धन की रक्षा करनी चाहिये, धन से स्त्री की रक्षा करनी चाहिये और धन तथा स्त्री, इन दोनों से नित्य अपनी रक्षा करनी चाहिये ।। ५४ ॥
एकहिँ तजि कुल राखिये, कुल तजि रखिये ग्राम ॥
ग्राम त्यागि रखु देश कों, आतमहित वसु धाम ॥ ५५॥ एक को छोड़कर कुल की रक्षा करनी चाहिये अर्थात् एक मनुप्य के लिये तमाम कुल को नहीं छोड़ना चाहिये किन्तु एक मनुष्य को ही छोड़ना चाहिये, कुल को छोड़कर ग्राम
१-तात्पर्य यह है कि इस संसार में मनुष्य की हानि और लाभ का हेतु केवल पूर्व जन्म का किया हुआ कर्म ही होता है, यही मनुष्य को विपत्ति में डालता है और यही मनुष्य को विपत्तिसागर से पार निकालता है, इस लिये उस कर्म के प्रभाव से जो सुख या दुख अपने को प्राप्त होनेवाला है उस को देवता और दानव आदि कोई भी नहीं हटा सकता है, इस लिये हे बुद्धिमान् पुरुषो! जरा भी चिन्ता मत करो क्योकि जो अपने भाग्य का है वह पराया कमी नहीं हो सकता है । २-तात्पर्य यह है कि-धन के नाश का कुछ भी विचार न कर विपत्ति से पार होना चाहिये तथा स्त्री की रक्षा करना चाहिये और धन और स्त्री, इन दोनों के भी नाश का कुछ विचार न करके अपनी रक्षा करनी चाहिये अर्थात् इन दोनो का यदि नाश होकर भी अपनी रक्षा होती हो तो भी अपनी रक्षा करनी चाहिये ।
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