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________________ प्रथम अध्याय || २५ २१ - आदर के लिये क्रिया में बहुवचन होता है, चाहें आदरसूचक शब्द कर्ता के साथ हो वा न हो, जैसे- राजाजी आये है । पिताजी गये है, आप वहां जावेंगे, इत्यादि ॥ २२- यदि एक क्रिया के बहुत कर्म हों और उन के बीच में विभाजक शब्द रहे तो क्रिया एकवचनान्त रहेगी, जैसे – मेरा भाई न रोटी, न दाल, न भात, खावेगा ॥ २३-यदि एक क्रिया के उत्तम, मध्यम और अन्य पुरुष कर्ता हों तो क्रिया उत्तम पुरुष के अनुसार और यदि मध्यम तथा अन्य पुरुष हों तो मध्यम पुरुष के अनुसार होगी, जैसे—तुम, वह और मैं चलूंगा । तुम और वह जाओगे || २४ - वाक्य में कभी २ विशेषण भी क्रियाविशेषण हो कर आता है, जैसे- घोड़ा अच्छा दौड़ता है, इत्यादि ॥ २५ - वाक्य में कभी २ कर्ता, कर्म तथा क्रिया गुप्त भी रहते है, जैसे-— खेलता है, दे दिया, घर का बाग || २६- सामान्यभूत, पूर्णमूत, आसन्नभूत और सन्दिग्धभूत, इन चार कालों में सकर्मक क्रिया के आगे 'ने' चिन्ह रहता है, परन्तु अपूर्णभूत और हेतुहेतुमद्भूत में नहीं रहता है, जैसे- मैं ने दिया, उस ने खाया था, लड़के ने लिया है, भाई ने दिया होगा, माता खाती थी, इत्यादि ॥ २७- चकना, बोलना, भूलना, जनना, जाना, ले जाना, खा जाना, इन सात क्रियाओं के किसी भी काल में कर्ता के आगे 'ने' नहीं आता है ॥ २८-जहां उद्देश्य विरुद्ध हो वहां वाक्य असंभव समझना चाहिये, जैसे - आग से सींचहै, पानी से जलाते है, इत्यादि ॥ यह प्रथमाध्याय का वाक्यविचार नामक पांचवां प्रकरण समाप्त हुआ ॥ इति श्री जैन श्वेताम्बर धर्मोपदेशक, यतिप्राणाचार्य, विवेकलव्धिशिष्य, शीलसौभाग्य - निर्मितः । जैनसम्प्रदायशिक्षायाः । प्रथमोऽध्यायः ॥
SR No.010052
Book TitleJain Sampradaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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