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________________ ३५४ जैनसम्प्रदायशिक्षा || विवाह के हेतु से मरती है तथा फी सदी दो मनुष्य इसी से ऐसे हो जाते हैं कि जिन को सदा रोग घेरे रहते हैं और वे आघे आयु में ही मरते हैं । प्रिय सज्जनो ! ' इस के अतिरिक्त अपने शास्त्रों की तरफ तथा प्राचीन इतिहासों की तरफ भी ज़रा दृष्टि दीजिये कि विवाह का क्या समय है और वह किस प्रयोजन के लिये किया जाता है - मर्ष ( ऋषिप्रणीत ) मन्थोंपर दृष्टि डालने से यह बात स्पष्ट प्रकट होती है कि विवाह' का मुख्य प्रयोजन सन्तान का उत्पन्न करना है और उस का ( सन्तानोत्पत्ति का ) समय शास्त्रकारों नें इस प्रकार कहा है कि: त्रियां षोडशवर्षायां पञ्चविंशतिहायनः ॥ बुद्धिमानुद्यमं कुर्यात्, विशिष्टसुतकाम्यया ॥ १ ॥ अर्थ - पचीस वर्ष की अवस्थावाले ( जबान ) बुद्धिमान पुरुष को सोलह वर्ष की स्त्री के साथ सुपुत्र की कामना से संभोग करना चाहिये ॥ १ ॥ तदा हि प्राप्तवीर्यौ तौ सुतं जनयतः परम् ॥ आयुर्बलसमायुक्तं, सर्वेन्द्रिय समन्वितम् ॥ २ ॥ अर्थ — क्योंकि उस समय दोनों ही ( स्त्री पुरुष ) परिपक्क ( पके हुए) वीर्य से युक्त होने से आयु बल तथा सर्व इन्द्रियों से परिपूर्ण पुत्र को उत्पन्न करते हैं ॥ २ ॥ न्यूनषोडशवर्षायां, न्यूनान्दपश्चविंशतिः ॥ पुमान् यं जनयेद् गर्भ, स प्रायेण विपद्यते ॥ ३ ॥ अल्पायुर्बलहीनो वा, दारिद्र्योपद्रुतोऽथवा ॥ कुष्ठादि रोगी यदि वा भवेद्वा विकलेन्द्रियः ॥ ४ ॥ अर्थ -- यदि पचीस वर्ष से कम अवस्थावाला पुरुष- सोलह वर्ष से कम अवस्थावाली स्त्री के साथ सम्भोग कर गर्भाधान करे तो वह गर्म प्रायः गर्भाशय में ही नाश को प्राप्त है ॥ ३ ॥ अथवा वह सन्तति अल्प आयुवाली, निर्बल, दरिद्री, कुष्ठ आदि रोगों से युक्त, अथवा विकलेन्द्रिय (अपांग) होती है ॥ ४ ॥ शास्त्रों में इस प्रकार के वाक्य अनेक स्थानों में लिखे हैं जिन का कहांतक वर्णन करें । प्रिय मित्रो ! अपने और देश के शुभचिन्तको ! अब आप से यही कहना है कि यदि आप अपने सन्तानों को सुखी देखना चाहते हो तथा परिवार और देश की उन्नति को चाहते हो तो सब से प्रथम आप का यही कर्त्तव्य होना चाहिये कि - अनेक रोगों के मूल कारण इस बाल्यावस्था के विवाह की कुरीति को बंद कर शास्त्रोक्त रीति को प्रचलित १- ये सब छोक जैनाचार्य श्रीजिनदत्तसूरिकृत "विवेकविलास” के पश्चम उस में लिखे है ॥
SR No.010052
Book TitleJain Sampradaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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