SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 171
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुर्थ अध्याय ॥ ३०५ आलस्य पास तक नहीं आने पाता है, देखो ! इस बात को तो सब ही लोग जानते है कि- शरीर में सहस्रों छिद्र हैं जिन में रोम जमे हुए है और वे निष्प्रयोजन नहीं है किन्तु सार्थक हैं अर्थात् इन्हीं छिद्रों में से शरीर के भीतर का पानी ( पसीना ) तथा दुर्गन्धित वायु निकलता है और बाहर से उत्तम वायु शरीर के भीतर जाता है, इस लिये नव मनुष्य स्नान करता रहता है तब वे सब छिद्र खुले और साफ रहते हैं परन्तु स्नान न करने से मैल आदि के द्वारा जब ये सब छिद्र बंद हो जाते है तब ऊपर कही हुई क्रिया भी नहीं होती है, इस क्रिया के बंद हो जाने से दाद, खाज, फोड़ा और फुंसी आदि रोग होकर अनेक प्रकार का क्लेश देते हैं, इस लिये शरीर के स्वच्छ रहने के लिये प्रतिदिन खयं स्नान करना योग्य है तथा अपने बालकों को भी नित्य स्नान कराना उचित है । स्नान करने में निम्नलिखित नियमों का ध्यान रखना चाहिये: १ - शिर पर बहुत गर्म पानी कभी नही डालना चाहिये, क्योंकि ऐसा करने से नेत्रोंको हानि पहुँचती है। २ - वीमार आदमी को तथा ज्वर के जाने के बाद जबतक शरीर में ताकत न आवे तबतक खान नही करना चाहिये, उस में भी ठंढे जलं से तो मूल कर भी खान नहीं करना चाहिये । ३ - बीमार और निर्बलपुरुष को भूखे पेट नहीं नहाना चाहिये अर्थात् चाह और दूध आदि का नास्ता कर एक घंटे के पीछे नहाना चाहिये । ४ - शिर पर ठंढा जल अथवा कुए के जल के घड़ पर सामान्य गर्म जल और कमर के नीचे के डालना चाहिये । समान गुनगुना नल, शिर के नीचे के भाग पर सुहाता हुआ तेज़ गर्म जल ५-पित्त की प्रकृतिवाले जवान आदमी को ठंडे पानी से नहाना हानि नहीं करता है किन्तु लाभ करता है । ६ - सामान्यतया थोड़े गर्म जल से स्नान करना प्रायः सव ही के अनुकूल आता है । ७- यदि गर्म पानी से खान करना हो तो जहां बाहर की हवा न लगे ऐसे बंद मकानमें कन्धों से स्नान करना उत्तम है, परन्तु इस बात का ठीक २ प्रबन्ध करना सामान्य जनों के लिये प्रायः असम्भवसा है, इस लिये साधारण पुरुषों को यही उचित है किसदा शीतल जल से ही स्नान करने का अभ्यास डालें ' ८-जहांतक हो सके स्नान के लिये ताज़ा जल लेना चाहिये क्योंकि ताज़े जल से स्नान करने से बहुत लाभ होता है परन्तु वह ताज़ा जल भी स्वच्छ होना चाहिये । ९- खान के विषय में यह अवश्य ध्यान में रखना चाहिये कि तरुण तथा नीरोग पुरुषों को शीतल जल से तथा बुड्ढे दुर्बल और रोगी जनों को गुनगुने जल से स्नान करना चाहिये । ३९
SR No.010052
Book TitleJain Sampradaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy