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________________ ३०४ जैनसम्प्रदायशिक्षा || सके तो पैरों की पीडियों और हाथ पैरों के तलवों में तो अवश्य मसलाना चाहिये तथा शिर और कान में डालना तथा मसलाना चाहिये, यदि प्रतिदिन तेल का मर्दन न बन सके तो अठवाड़े में तो एकवार अवश्य मर्दन करवाना चाहिये और यदि यह भी न बन- सके तो शीतकाल में तो अवश्य इस का मर्दन कर वाना ही चाहिये । तेल का मर्दन कराने के बाद चने के आटे से अथवा आंवले के चूर्ण से चिकनाहट को दूर कर देना चाहिये || सुगन्धित तैलों के गुण ॥ चमेली का तेल - इसकी तासीर ठंढी और तर है । हिने का तेल - यह गर्म होता है, इस लिये जिन की वादीकी प्रकृति होवे इस को लगाया करें, चौमासेमें भी इस का लगाना लाभदायक है । अरगजे का तेल – यह गर्म होता है तथा उग्रगन्ध होता है अर्थात् इस की खुशबू तीन दिनतक केशों में बनी रहती है । गुलाब का तेल – यह ठंढा होता है तथा जितनी सुगन्धि इस में होती है उतनी दूसरे में नहीं होती है, इस की खुशबू ठंढी और तर होती है । केवड़े का तेल -- यह बहुत उत्तम हृदयप्रिय और ठंढा होता है । मोगरे का तेल - यह ठंढा और तर है । नींबू का तेल - यह ठंढा होता है तथा पित्तकी प्रकृतिवालों के लिये फायदे - मन्दे है ॥ 1 खान ॥ तैलादि के मर्दन के पीछे स्नान करना चाहिये, स्वान करने से गर्मी का रोग, हृदय का ताप, रुधिर का कोप और शरीर की दुर्गन्ध दूर होकर कान्ति तेज बल और प्रकाश बढ़ता है, क्षुधा अच्छे प्रकार से लगती है, बुद्धि चैतन्य हो जाती है, आयु की वृद्धि होती है, सम्पूर्ण शरीर को आराम मालूम पड़ता है, निर्बलता तथा मार्ग का खेद दूर होता है और १- इन सब तैलों को उत्तम बनाने की रीति को वे ही जानते हैं जो प्रतिसमय इन को बनाया करते हैं, क्योंकि तिलों मे फूलों को बसा कर बड़े परिश्रम से फुलेला बनाया जाता है, दो रुपये सेर के भावका सुगन्धित तैल साधारण होता है, तीन चार पाच सात और दश रुपये सेर के भाव का भी लेना चाहो तो मिल सकता है, परन्तु उस की ठीक पहिचान का करना प्रत्येक पुरुष का काम नही है अर्थात् बहुत कठिन है, यदि सेरभर चमेली के तेल में एक तोले भर केवड़े का दार हो जावेगा तथा उस से सारा मकान महक उठेगा, भर चमेली का अंतर, हिने के तेल में हिने का अतर, अरगजे के तेल में अरगने का अंतर, गुलाब के तेल मे गुलाब का अंतर और मोगरे के तेल में मोगरे का अतर डाल दिया जावे तो वे तेल अत्यन्त ही खुशबूदार हो जावेगे ॥ अतर डाल दिया जावे तो वह तेल बहुत खुशबू इसी प्रकार सेरभर चमेली के तेल में एक तोले
SR No.010052
Book TitleJain Sampradaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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