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________________ ३०६ जनसम्प्रदायाशक्षा ॥ १०-शरीर को पीठी उबटन वा साबुन लगा कर रगड़ २ के खूब धोना चाहिये पीछे खान करना चाहिये। । • ११-नान करने के पश्चात् मोटे निर्मल कपड़े से शरीर को खूब पोंछना चाहिये कि जिस से सम्पूर्ण शरीर के किसी अंग में तरी न रहे। १२-गर्मिणी स्त्री को तेल लगाकर सान नहीं करना चाहिये । . १३-नेत्ररोग, मुखरोग, कर्णरोग, अतीसार, पीनस तथा ज्वर आदि रोगवालों को खान नहीं करना चाहिये। १४-शान करने से प्रथम अथवा प्रातःकाल में नेत्रों में ठढे पानी के छीटे देकर धोना बहुत लाभदायक है। १५-शान करने के बाद घंटे दो घण्टेतक द्रव्यभाव से ईश्वर की भक्ति को ध्यान लगाकर करना चाहिये, यदि अधिक न बन सके तो एक सामायिक को तो शास्त्रोक्त नियमानुसार गृहस्थों को अवश्य करना ही चाहिये, क्योंकि जो पुरुष इतना भी नहीं करता है वह गृहस्थाश्रम की पङ्किमें नहीं गिना जा सकता है अर्थात् वह गृहस्य नहीं है किन्तु उसे इस (गृहस्थ ) आश्रम से भी प्रष्ट और पतित समझना चाहिये ॥ .. .. पैर धोना ॥ . . . पैरों के धोने से थकावट जाती रहती है, पैरों का मैल निकल जाने से स्वच्छता आ जाती है, नेत्रों को तरावट तथा मन को आनंद प्राप्त होता हैं, इस कारण जब कहीं से चलकर आया हो वा जब आवश्यकता हो तब पैरों को धोकर पोंछ डालना चाहिये, यदि सोते समय पैर धोकर शयन करे तो नींद अच्छे प्रकार से आजाती है ॥' भोजन ॥ . प्यारे मित्रो ! यह सब ही जानते है कि अन्न के ही भोजन से प्राणी बढ़ते और जीवित रहते हैं इस के विना न तो प्राणी जीवित ही रह सकते हैं और न कुछ कर ही सकते हैं, इसी लिये चतुर पुरुषों ने कहा है कि-प्राण अन्नमय है यद्यपि भोजन का रिवाज़ मिन्न २ देशों के मिन्न २ पुरुषों का भिन्न २ है इसलिये यहां पर उसके लिखने की कोई आवश्यकता प्रतीत नहीं होती है तथापि यहां पर संक्षेप से शास्त्रीय नियम के अनुसार सामान्यतया सर्व हितकारी जो भोजन है उस का वर्णन किया जाता है: १-आजकल बहुत से शौकीन लोग चर्बी से बने हुए खुशबूदार साबुन को लगा कर नान करते है परन्तु धर्म से भ्रष्ट होने की तरफ बिलकुल ख्याल नहीं करते हैं, यदि सावुन लगाकर नहाना हो तो उत्तम देशी साबुन लगाकर नहाना चाहिये, क्योंकि देशी साबुन में चर्वी नहीं होती है ॥ -इस वन को अंगोछा कहते हैं, क्योंकि इस से अंग पोंछा जाता है अंगोछा प्रायः गजी का अच्छा होता है।
SR No.010052
Book TitleJain Sampradaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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