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________________ चतुर्थ अध्याय ॥' २९५ पथ्यापथ्य के विषय में यह अवश्य स्मरण रखना चाहिये कि देश और अपनी प्रकृति को पहचान कर पथ्य का सेवन करना चाहिये तथा अपथ्य का त्याग करना चाहिये, इस विषय में यदि किसी विशेष बात का विवेचन करना हो तो चतुर वैध तथा डाक्टरों की सलाह से कर लेना चाहिये, यह विषय बहुत गहन ( कठिन ) है, इस लिये जो इस विद्या के जानकार हों उन की संगति अवश्य करनी चाहिये कि जिस से शरीर की आरोग्यता के नियमों का ठीक २ ज्ञान होने से सदा आरोग्यता बनी रहे तथा समयानुसार दूसरों का भी कुछ उपकार हो सके, वैसे भी बुद्धिमानों की संगति करने से अनेक लाभ ही होते है। यह चतुर्थ अध्याय का ऋतुचर्यावर्णन नामक सातवां प्रकरण समाप्त हुआ। आठवां प्रकरण-दिनचर्या वर्णन ॥ प्रातःकाल का उठना ॥ यह बात तो स्पष्टतया प्रकट ही है कि-खाभाविक नियम के अनुसार सोने के लिये रात और कार्य करने के लिये दिन नियत है, परन्तु यह भी स्मरण रहे कि-प्रातःकाल जब चार पड़ी रात बाकी रहे तब ही नीद को छोड़कर जागृत हो जाना अब्बल दर्ने का काम है, यदि उस समय अधिक निद्रा आती हो अथवा उठने में कुछ अड़चल मालूम होती हो तो दूसरा दर्जा यह है कि दो घड़ी रात रहने पर उठना चाहिये और तीसरा दर्जा सूर्य चढे वाद उठने का है, परन्तु यह दर्जा निकृष्ट और हानिकारक है, इसलिये आयु की रक्षा के लिये मनुष्यों को रात्रि के चौथे पहर में आलस्य को त्याग कर अवश्य उठना चाहिये, क्योंकि जल्दी उठने से मन उत्साह में रहता है, दिन में काम काज अच्छी तरह होता है, वुद्धि निर्मल रहती है और स्मरणशक्ति तेज़ रहती है, पढ़नेवालों के लिये भी यही (प्रातःकाल का) समय बहुत श्रेष्ठ है, अधिक क्या कहें इस विषय के लाभों के वर्णन करने में बड़े २ ज्ञानी पूर्वाचार्य तत्त्ववेत्ताओं ने अपने २ ग्रन्थों में लेखनी को खूब ही दौड़ाया है, इस लिये चार घड़ी के तड़के उठने का सब मनुष्यों को अवश्य अभ्यास डालना चाहिये परन्तु यह भी स्मरण रहे कि विना जल्दी सोये मनुष्य प्रातःकाल चार वजे कभी नहीं उठ सकता है, यदि कोई जल्दी सोये उक्त समय में उठ भी जावे तो इस से नाना प्रकार की हानियां होती हैं अर्थात् शरीर दुर्वल होजाता है, शरीर में आलस्य जान पड़ता है, आंखों में जलन सी रहती है, शिर में दर्द रहता है तथा भोजन पर भी ठीक रुचि नही रहती है, इस लिये रात को नौ वा दश बजे पर अवश्य
SR No.010052
Book TitleJain Sampradaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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