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जैनसम्प्रदायशिक्षा ॥ सो रहना चाहिये कि जिस से प्रातःकाल में विना दिक्कत के उठ सके, क्योंकि प्राणी मात्र को कम से कम छः घण्टे अवश्य सोना चाहिये, इस से कम सोने में मस्तक का रोग आदि अनेक विकार उत्पन्न होजाते है, परन्तु आठ घण्टे से अधिक भी नहीं सोना चाहिये क्योंकि आठ घंटे से अधिक सोने से शरीर में आलस्य वा भारीपन जान पड़ता है और कार्यों में भी हानि होने से दरिद्रता घेर लेती है, इसलिये उचित तो यही है कि रात को नौ या अधिक से अधिक दश बजे पर अवश्य सो रहना चाहिये तथा प्रातःकाल चार घड़ी के तड़के अवश्य उठना चाहिये, यदि कारणवश चार घड़ी के तड़के का उठना कदाचित् न निभसके तो दो घड़ी के तड़के तो अवश्य उठना ही चाहिये।
प्रातःकाल उठते ही पहिले खरोदय का विचार करना चाहिये, यदि चन्द्र स्वर चलता हो तो वांयां पांव और सूर्य खर चलता हो तो दाहिना पांव जमीन पर रख कर थोड़ी देरतक विना ओठ हिलाये परमेष्ठी का स्मरण करना चाहिये, परन्तु यदि सुपुम्ना स्वर चलता हो तो पलंग पर ही बैठे रहकर परमेष्ठी का ध्यान करना ठीक है क्योंकि यही समय योगाभ्यास तथा ईश्वराराधन अथवा कठिन से कठिन विषयों के विचारने के लिये नियत है, देखो! जितने सुजन और ज्ञानी लोग आजतक हुए है वे सब ही प्रातःकाल उठते थे परन्तु कैसे पश्चाताप का विषय है कि इन सब अकथनीय लाभों का कुछ भी विचार न कर भारतवासी जन करवटें ही लेते २ नौ बजा देते हैं इसी का यह फल है कि वे नाना प्रकार के क्लेशों में सदा फंसे रहते है ॥
प्रातःकाल का वायुसेवन ॥ प्रातःकाल के वायु का सेवन करने से मनुष्य दृष्ट पुष्ट बना रहता है, दीर्घायु और चतुर होता है, उस की बुद्धि ऐसी तीक्ष्ण हो जाती है कि कठिन से कठिन आशय कोभी सहन में ही जान लेता है और सदा नीरोग बना रहता है, इसी (प्रातःकाल के) समय बस्ती के बाहर बागों की शोभा के देखने में बड़ा आनंद मिलता है, क्योंकि इसी समय वृक्षों से जो नवीन और खच्छ प्राणप्रद वायु निकलता है वह हवा के सेवन के लिये वाहर जाने वालों की श्वास के साथ उन के शरीर के भीतर जाता है जिस के प्रभाव से मन कली की भांति खिल जाता और शरीर प्रफुल्लित हो जाता है, इसलिये हे प्यारे प्रातृगणो । हे सुजनो ! और हे घर की लक्ष्मियो ! प्रातःकाल तड़के जागकर खच्छ वायु के सेवन का अभ्यास करो कि जिस से तुम को व्याधिजन्य क्लेश न सहने पड़ें और सदा तुम्हारा मन प्रफुल्लित और शरीर नीरोग रहे, देखो । उक्त समय में वृद्धि भी निर्मल '१-खरोदय के विषय मे इसी अन्य के पाचवें अध्याय में वर्णन किया जावेगा, वहा इस का सम्पूर्ण विषय देख लेना चाहिये।