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जैनसम्प्रदायशिक्षा ॥ का सेवन, ऊन आदि का गर्म कपड़ा, अँगीठी (सिगड़ी) से मकान को गर्म रखना आदि वातें इस ऋतु में पथ्य है।
हेमन्त और शिशिर ऋतु का प्रायः एक सा ही वर्चाव है, ये दोनों ऋतुयें वीर्य को सुधारने के लिये बहुत अच्छी है, क्योंकि इन ऋतुओं में जो चीर्य और शरीर को पोषण दिया जाता है वह बाकी के आठ महीने तक ताकत रखता है अर्थात् वीर्य पुष्ट रहता है। ___ यद्यपि सवही ऋतुओं में आहार और विहार के नियमों का पालन करने से शरीर का सुधार होता है परन्तु यह सब ही जानते है कि वीर्य के सुधार के विना शरीर का सुधार कुछ भी नहीं हो सकता है, इस लिये वीर्य का सुधार अवश्य करना चाहिये और वीर्य के सुधारने के लिये शीत ऋतु, गीतल प्रकृति और शीतल देश विशेष अनुकूल होता है, देखो ! ठंढी तासीर, ठंढी मौसम और ठंढे देश के वसने वालों का वीर्य अधिक दृढ होता है।
यद्यपि यह तीनों प्रकार की अनुकूलता इस देश के निवासियों को पूरे तौर से प्राप्त नहीं है, क्योंकि यह देश सम शीतोष्ण है तथापि प्रकृति और ऋतु की अनुकूलता तो इस देश के भी निवासियों के भी आधीन ही है, क्योंकि अपनी प्रकृति को ठंढी अर्थात् दृढ़ता और सत्वगुण से युक्त रखना यह बात खाधीन ही है, इसी प्रकार वीर्य को सुधारने के लिये तथा गर्भाधान करने के लिये शीतकाल को पसन्द करना भी इन के खाधीन ही है, इसलिये इस ऋतु में अच्छे वैध वा डाक्टर की सलाह से पौष्टिक दवा, पाक अथवा खुराक के खाने से बहुत ही फायदा होता है ।
जायफल, जावित्री, लोग, बादाम की गिरी और केशर को मिलाकर गर्म किये हुए दूध का पीना भी बहुत फायदा करता है। . .~-
वादाम की फतली वा वादाम की रोटी का खाना वीर्य पुष्टि के लिये बहुत ही फायदे मन्द है।
इन ऋतुओं में अपथ्य-जुलाब का लेना, एक समय भोजन करना, वासी रसोई का खाना, तीखे और तुर्स पदार्थों का अधिक सेवन करना, खुली जगह में सोना, ठंढे पानी से नहाना और दिनमें सोना, ये सब बातें इन ऋतुओ में अपथ्य हैं, इसलिये इन का त्याग करना चाहिये ॥ ___ यह जो ऊपर छःओं ऋतुओं का पथ्यापथ्य लिखा गया है वह नीरोग प्रकृतिवालों के लिये समझना चाहिये, किन्तु रोगी का पथ्यापथ्य तो रोग के अनुसार होता है, वह संक्षेप से आगे लिखेंगे।