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________________ २९० जैनसम्प्रदायशिक्षा | ६- छाछ, नींबू और कच्चे आम आदि खट्टे पदार्थ मी अन्य ऋतुओं की अपेक्षा इस ऋतु में अधिक पथ्य है । ७- इन वस्तुओं का उपयोग भी प्रकृति के अनुसार तथा परिमाण. मूजव करने से लाभ होता है अन्यथा हानि होती है । ८-नदी तालाब और कुए के पानी में जल पीने योग्य नहीं रहता है, इस लिये मिलता हो उस का जल पीना चाहिये । बरसात का मैला पानी मिल जाने से इन का जिस कुए में वा कुण्ड में बरसाती पानी न ९ - बरसात के दिनों में पापड़, काचरी और भुनिये, बड़े, चीलड़े, बेढ़ई, कचौड़ी आदि नेहवाले लिये इन का सेवन करना चाहिये । १० - इस ऋतु में नमक अधिक खाना चाहिये || अचार आदि क्षारवाले पदार्थ तथा पदार्थ अधिक फायदेमन्द हैं, इस - इस ऋतु में अपथ्य – तलघर में बैठना, नदी या तालाब का गँदला जल पीना,. दिन में सोना, धूप का सेवन और शरीर पर मिट्टी लगाकर कसरत करना, इन सब बातों से बचना चाहिये । इस ऋतु में रूक्ष पदार्थ नहीं खाने चाहियें, क्योंकि रूक्ष पदार्थ वायु को बढ़ाते हैं, ठंढी हवा नही लेनी चाहिये, कीचड़ और भीगी हुई पृथिवी पर नंगे पैर नही फिरना चाहिये, भीगे हुए कपड़े नहीं पहरने चाहियें, हवा और जल की बूंदों के सामने नही बैठना चाहिये, घर के सामने कीचड़ और मैलापन नही होने देना चाहिये, बरसात का जल नहीं पीना चाहिये और न उस में नहाना चाहिये, यदि नहाने की इच्छा हो तो शरीर में तेल की मालिस कर नहाना चाहिये, इस प्रकार से आरोग्यता की इच्छा रखने बालों को इन चार मासतक ( प्रावृट् और वर्षा ऋतु में) वर्ताव करना उचित है ॥ शरद् ऋतु का पथ्यापथ्य ॥ " सव ऋतुओं में शरद् ऋतु रोगों के उपद्रव की जड़ है, देखो ! वैदकशास्त्रकारों का कथन है कि - " रोगाणां शारदी माता पिता तु कुसुमाकरः" अर्थात् शरद् ऋतु रोगों को पैदा करनेवाली माता है और वसन्त ऋतु रोगों को पैदा कर पालनेवाला पिता है, यह सब ही जानते हैं कि सब रोगों में ज्वर राजा है और ज्वर ही इस ऋतु का मुख्य उपद्रव है, इसलिये इस ऋतु में बहुत ही सॅमल कर चलना चाहिये, वर्षा ऋतु में सञ्चित हुआ पित्त इस ऋतु के ताप की गर्मी से शरीर में बरसात के कारण ज़मीन भीगी हुई होती है १- यह कल्पसूत्र की टीका में लिखा है । कुपित होकर बुखार को करता है तथा इसलिये उस से भी धूप के द्वारा जल की
SR No.010052
Book TitleJain Sampradaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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