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________________ चतुर्थ अध्याय ॥ २२३ सब तरह के मल्हमों में पुराना धी गुण करता है किन्तु केवल पुराने घी में भी मल्हम सब गुण है । विचार कर देखा जावे शुद्ध और उत्तम घी घी को शास्त्रकारों ने रत्न कहा है किन्तु अधिक गुणकारी है परन्तु वर्त्तमान समय में साधारण पुरुषों को मिलना कठिन सा होगया है, इस का कारण केवल उपकारी गाय भैंस आदि पशुओं की न्यूनता ही है ॥ गाय का मक्खन - नवीन निकाला हुआ गाय का मक्खन हितकारी है, बलवर्धक है, रंग को सुधारता है, अभि का दीपन करता है तथा दस्त को रोकता है, वायु, पिच, रक्तविकार, क्षय, हरस, अर्दित वायु तथा खांसी के रोग में फायदा करता है, प्रातःकाल मिश्री के साथ खाने से यह विशेष कर शिर और नेत्रों को लाभ देता है तथा बालकों के लिये तो यह अमृतरूप है ॥ भैंस का मक्खन — मैस का मक्खन वायु तथा कफ को करता है, भारी है, दाह पित्त और श्रम को मिटाता है, मेद तथा वीर्य को बढता है ॥ तो यह रत्न से भी भाग्यवानों के सिवाय वासा मक्खन खारा तीखा और खट्टा होजानेसे वमन, हरस, कोढ, कफ तथा मेद को उत्पन्न करता है ॥ दधिवर्ग ॥ - दही के सामान्य गुण – दही- गर्म, अभिदीपक, भारी, पचनेपर खट्टा तथा दस्त को रोकनेवाला है, पित्त, रक्तविकार, शोथ, मेद और कफ को उत्पन्न करता है, पीनस, जुखाम, विषम ज्वर ( ठंढ का तप ), अतीसार, अरुचि, मूत्रकृच्छ्र और कृशता ( दुर्बलता ) को दूर करता है, इस को सदा युक्ति के साथ खाना चाहिये । दही मुख्यतया पांच प्रकार का होता है— मन्द, खादु, खाद्वम्ल, अम्ल और अत्यम्ल, इन के खरूप और गुणों का संक्षेप से वर्णन किया जाता है: - मन्द - जो दही कुछ गाढा हो तथा मिश्रित ( कुछ दूध की तरह तथा कुछ दही की तरह ) खादवाला हो उस को मन्द दही कहते है, यह - मल मूत्र की प्रवृत्ति को, तीनों दोषों को और दाह को उत्पन्न करता है ॥ स्वादु – जो दही खूब जम गया हो, जिस का खाद अच्छी तरह मालूम होता हो, मीठे रसवाला हो तथा अव्यक्त अम्ल रसवाला ( जिस का अम्ल रस प्रकट में न मालूम १- शेष पशुओ के मक्खन के गुणो का वर्णन अनावश्यक समझ कर नहीं किया ॥ २ - यह घृत का सक्षेप से वर्णन किया गया है, इस का विशेष वर्णन दूसरे वैद्यक प्रन्थों में देखना चाहिये ॥ ३- वैसे देखा जावे तो मीठा और खट्टा, ये दो ही भेद प्रतीत होते है। "
SR No.010052
Book TitleJain Sampradaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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