SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 132
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७४ जैनसम्प्रदायशिक्षा || चाहिये, लोगों के सुख के साफ रहता है इसलिये उस समय पीने के लिये जल भर लेना लिये सर्कार को यह भी उचित है कि ऐसे जलस्थानों पर पहरा विठला देवे कि - जिस से पहरेवाला पुरुष जलाशय में नहाना, धोना, पशुओं को धोना और मरे आदमी की जलाई हुई राख आदि का डालना आदि बातों को न होनेदेवे । बहुत पानी वाली जो नदी होती है तथा जिस का पानी जोर से बहता है उस का तो "मैल और कचरा तले बैठ जाता है अथवा किनारे पर आकर इकट्ठा हो जाता है परन्तु जो नदी छोटी अर्थात् कम जलवाली होती है तथा धीरे २ बहती है उस का सब मैल और कचरा आदि जल में ही मिला रहता है, एवं तालाब और कुँए आदि के पानी में भी प्रायः मैल और कचरा मिला ही रहता है, इस लिये छोटी नदी तालाब और कुँए आदि के पानी की अपेक्षा बहुत जलवाली और जोर से बहती हुई नदी का पानी अच्छा होता है, इस पानी के सुधरे रहने का उपाय जैनसूत्रों में यह लिखा है कि उस जल में घुस के स्नान करना, दाँतोन करना, वस्त्र धोना, मुर्दे की राख डालना तथा हाड़ ( फूल ) डालना आदि कार्य नहीं करने चाहियें, क्योंकि उक्त कार्यों के करने से वहां का जल खराब होकर प्राणियों को रोगी कर देता है और यह बात ( प्राणियों को रोगी करने के कार्यों का करना ) धर्म के कायदे से अत्यन्त विरुद्ध है, अस्थि या मुर्दे की राख से हवा और जल खराब न होने पावे इस लिये उन ( अस्थि और राख ) को नीचे दबा कर ऊपर से स्तूप ( थम्भ या छतरी ) करा देनी चाहिये, यही जैनियों की परम्परा है, यह परम्परा बीकानेर नगर में प्रायः सब ही हिन्दुओं में भी देखी जाती है और विचार कर देखा जावे तो यह प्रथा बहुत ही उत्तम है, क्योंकि वे अस्थि और राख आदि पदार्थ ऐसा करने से प्राणियों को कुछ भी हानि नहीं पहुँचा सकते हैं, ज्ञात होता है कि जब से भरत चत्री ने कैलास पर्वत पर अपने सौ भाइयों की राख और हड्डियों पर स्तूप करवाये थे तब ही से यह उत्तम प्रथा चली है ॥ एका पानी - पहिले कह पृथिवी की तासीर पर ही निर्मर है चुके हैं कि पानी का खारा और इसलिये पृथिवी की तासीर का तासीर वाली पृथिवी पर स्थित नल को उपयोग में लाना चाहिये, यह भी स्मरण रहे कि- गहरे कुँए का पानी छीलर ( कम गहरे ) कुँए के जल की अपेक्षा अच्छा होती है । जब कुँए के आस पास की पृथिवी पोली होती है और उस में कपड़े धोने से उन ( कपड़ों) से छूटे हुए मैल का पानी खान का पानी और बरसात का गन्दा पानी कुँए में मरता है (प्रविष्ट होता है ) तो उस कुँए का जल बिगड़ जाता है, परन्तु यदि कुँज मीठा होना आदि निश्चय कर के उत्तम , १ - जैसे बीकानेर में साठ पुरस के गहरे कुँए हैं, इसलिये उन का जल निहायत उमदा और साफ है ॥
SR No.010052
Book TitleJain Sampradaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy