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चतुर्थ अध्याय ॥
१७३ शरीर को अच्छे प्रकार से कसरत देने वाले इन ग्राम के निवासियों को भी ज्वर सताने लगता है, उन की, वीमारी का मूल कारण केवल मलीन पानी ही समझना चाहिये। ___ इस के सिवाय-जिस स्थान में केवल एक ही तालाव आदि जलाशय होता है तो सब लोग उसी में स्नान करते हैं, मैले कपड़े धोते है, गाय; ऊँट; घोड़े बकरी और भेड़ आदि पशु भी उसी में पानी पीते है, पेशाव करते हैं तथा जानवरों को भी उसी में स्नान कराते हैं और वही जल बस्ती वाले लोगों के पीने में आता है, इस से भी बहुत हानि होती है, इस लिये श्रीमती सर्कार, राजे महाराजे तथा सेठ साहूकारों को उचित है कि-जल की तंगी को मिटाने का तथा जल के सुधारने का पूरा प्रयत्न करें तथा सामान्य प्रजा के लोगों को भी मिलकर इस विषयमें ध्यान देना चाहिये ।
यदि ऊपर लिखे अनुसार किसी बस्ती में एक ही नदी वा जलाशय हो तो उस का ऐसा प्रबंध करना चाहिये कि-उस नदी के ऊपर की तरफ का जल पीने को लेना चाहिये तथा बस्ती के निकास की तरफ अर्थात् नीचे की तरफ मान करना, कपड़े धोना और जानवरों को पानी पिलाना आदि कार्य करने चाहिये, बहुत तड़के (गनरदम) प्रायः जल
१-परन्तु शतशः धन्यवाद है उन परोपकारी विमल मन्त्री वस्तुपाल तेजपाल आदि जैनथावकों को निम्हों ने प्रनाके इस महत् कष्ट को दूर करने के लिये हजारों ऊँए, बावडी, पुष्करिणी और तालाब बनवा दिये (यह विषय उन्हीं के इतिहास मे लिखा है), देखो। जैसलमेर के पास लोद्रवकुण्ड, रामदेहरे के पास उदयकुंड और अजमेर के पास पुष्करकॅड, ये तीनों भगाध जलवाले कुछ सिंधु देश के निवासी राजा उदाई की फौज़ में पानी की तगी होने से पद्मावती देवी ने (यह पावती राजा उदाई की रानी थी, जब इस को वैराग्य उत्पन्न हुआ तब इस ने अपने पति से दीक्षा लेनेकी भाशा मागी, परन्तु राजा ने इस से यह कहा कि-दीक्षा लेने की माला मैं तुम को तव दूगा जब तुम इस बात को खीकार करो कि "तप के प्रभाव से मर कर जब तुम को देवलोक प्राप्त हो जावे तब किसी समय संकट पड़ने पर यदि मैं तुम को याद करू तब तुम मुझ को सहायता देओ" रानी ने इस बात को खीकार कर लिया और समय आने पर अपने कहे हुए वचन का पालन किया) बनवाये, एष राजा अशोकचन्द्र आदिने भी अपने चम्पापुरी आदि जल की तगी के स्थानों में वृक्ष, सडक और जल की नहरें बनवाना शुरु कियाथा, इसी प्रकार मुर्शिदाबाद में अभी जो गया है उस को पहा नाम की वडी नदी से नाले के रूपमें निकलवा कर जागत् सेठ लाये थे, ये पूर्व बातें इतिहासों से विदित हो सकती हैं।
२-हम ऐसे अवसर पर श्रीमान् राजराजेश्वर, नरेन्द्रशिरोमणि, महाराजाधिराज श्रीमान् श्री गहासिह सीबहादुर बीकानेर नरेश को अनेकानेक धन्यवाद दिये विना नहीं रह सकते हैं कि-जिन्हों ने इस समय जा के हित और देश की आवादी के लिये अपने राज्य में नहर के लाने का पूरा प्रयनकर कार्यारम्भ ज्या है, उक्त नरेशमे वडा प्रशसनीय गुण यह है कि-आप एक मिनट भी अपना समय व्यर्थ मे न गमार सदैव प्रना के हित के लिये सुविचारों को करके उन में उद्यत रहा करते हैं, इस का प्रत्यक्ष प्रमाण ही है कि कुछ वर्षों पहिले बीकानेर किस दशा में था और आन कल उक्त नरेश के सुप्रताप और श्रेष्ठ न्धि से किस उन्नति के शिखर पर जा पहुंचा है, सिर्फ यही हेतु है कि उक महाराज की निर्मल कीर्ति पार भर में फैल रही है, यह सब उनकी उत्तम शिक्षा और उद्यम का ही फल है, इसी प्रकार से प्रमा हित करना सब नरेशो का परम कर्तव्य है।