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________________ चतुर्थ अध्याय ॥ १४९ सकता है ! देखो ! आरोग्यता ही से मनुष्य का चित्त प्रसन्न रहता, बुद्धि तीत्र होती तथा - मस्तक बलयुक्त बना रहता है कि जिस से वह शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक कार्यों : को अच्छे प्रकार से कर सुखों को भोग अपने आत्मा का कल्याण कर सकता है, इस • लिये ऐसे उत्तम पदार्थ को खो देना मानो मनुष्य जीवन के उद्देश्य का ही सत्यानाश " करना है, क्योंकि-आरोग्यता से रहित पुरुष कदापि अपने जीवन की सफलता को प्राप्त " नही कर सकता है, जीवन की सफलता का प्राप्त करना तो दूर रहा किन्तु जब आरोग्यता .. में अन्तर पड़ जाता है तो मनुष्य को अपने जीवन के दिन काटना भी अत्यन्त कठिन हो • जाता है, सत्य तो यह है कि-एक मनुष्य सर्व गुणों से युक्त तथा अनुकूल पुत्र, कलत्र और समृद्धि आदि से युक्त होने पर भी स्वास्थ्यरहित होनेसे जैसा दुःखित होता है दूसरा मनुष्य उक्त सर्व साधनों से रहित होने पर भी नीरोगता युक्त होने पर वैसा दुःखित नहीं होता है, यद्यपि यह बात सत्य है कि आरोग्यता की कदर नीरोग मनुष्य नहीं कर सकता है किन्तु आरोग्यता की कदर को तो ठीक रीति से रोगी ही जानसकता है, परन्तु तथापि नीरोग मनुष्य को भी अपने कुटुम्ब में माता, पिता, भाई, बेटा, बेटी तथा बहिन आदिके ." वीमार पड़नेपर नीरोगता का सुख और अनारोग्यता का दुःख विदित हो सकता है, देखो। • कुटुम्ब में किसी के बीमार पड़ने पर नीरोग मनुष्य के भी हृदय में कैसी घोर चिन्ता : उत्पन्न होती है, उसको इधर उधर वैद्य वा डाक्टरों के पास जाना पड़ता है, जीविका में हर्ज पड़ता है तथा दवा दारू में उपार्जित धन का नाश होता है, यदि विद्याहीन यमदूत के सदृश मूर्ख वैद्य मिल जावे तो कुटुम्बी के नाश के द्वारा वद्वियोग जन्य (उसके वियोग से उत्पन्न ) असह्य दुःखमी आकर उपस्थित होता है, फिर देखिये । यदि घर के काम काज की सँभालने वाली माता अथवा स्त्री आदि बीमार पड़ जावे तो बाल बच्चों की सँभाल और रसोई आदि कामों में जो २ हानियां पहुँचती हैं वे किसी गृहस्थ से छिपी नहीं है, फिर देखो ! यदि दैवयोग से घर का कमाने वाला ही बीमार हो जावे तो कहिये उस घर की क्या दशा होती है, एवं यदि प्रतिदिन कमा कर घर का खर्च चलाने वाला पुरुष बीमार पड़ जावे तो उस घर की क्या दशा होती है, इसपर भी यदि दुर्दैव वश उस पुरुष को ऋण भी उधार न मिल सके तो कहिये बीमारी के समय उस घर की विपत्ति का क्या ठिकाना है, इस लिये प्रिय मित्रो ! अनुभवी जनों का यह कथन बिलकुल ही सत्य है कि-"राज महल के अन्दर रहने वाला राजा भी यदि रोगी हो तो उसको दुःखी और • झोपडी में रहनेवाला एक गरीब किसान भी यदि नीरोग हो तो उसको सुखी समझना चाहिये" तात्पर्य यही है कि आरोग्यता सब सुखों का और अनारोग्यता सब दुःखों का . परम आश्रय है, सत्य तो यह है कि-रोगावस्था में मनुष्य को जितनी तकलीफ उठानी पड़तीहै उसे उस का हृदय ही जानता है, इस पर भी इस रोगावस्था में एक अतिदारुण
SR No.010052
Book TitleJain Sampradaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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