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________________ भ० महावीर और उनका समय ... ३३ ग्रन्थोंमें प्रयोग किया है और वह उस वक्त विक्रमकी मृत्युका संवत् माना जाता था। संवत्के साथमें विक्रमकी मृत्युका उल्लेख किया जाना अथवा न किया जाना एक ही बात थी-उससे कोई भेद नहीं पड़ता था--इसीलिये इस पद्यमें उसका उल्लेख नहीं किया गया। पहले पद्यमें मुझके राज्यकालका उल्लेख इस विषयका और भी खास तौरसे समर्थक है; क्योंकि इतिहाससे प्रचलित वि० संवत् १०५० में मुञ्जका राज्यासीन होना पाया जाता है। और इसलिये यह नहीं कहा जा सकता कि अमिततने प्रचलित विक्रमसंवत्से भिन्न किसी दूसरे ही विक्रमसंवत्का उल्लेख अपने उक्त पद्योंमें किया है। ऐमा कहने पर मृत्युसंवत् १०५० के समय जन्मसंवत् ११३० अथवा राज्यसंवत् १११२ का प्रचलित होना ठहरता है और उस वक्त तक मुञ्जके जीवित रहनेका कोई प्रमाण इतिहासमें नहीं मिलता । मुखके उत्तराधिकारी राजा भोजका भी वि० सं० १११२ से पूर्व ही देहावसान होना पाया जाता है । __अमितगति प्राचार्यके ममयमें, जिम प्राज साढ़े नौ सौ वर्षके करीब हो गये है, विक्रमसंवत् विक्रमको मृत्युका संवन माना जाता था यह बात उनसे कुछ समय पहलेके बने हुए देवसेनाचार्य के ग्रन्थोंसे भी प्रमाणित होती है। देवसेनाचार्यने अपना 'दर्शनमार' ग्रन्थ विक्रमसंवत् ६६० में बनाकर समाप्त किया है । इसमें कितने ही स्थानों पर विक्रमसंवत्का उल्लेख करते हुए उसे विक्रमकी मृत्युका संवत् सूचित किया है; जैसा कि इमकी निम्न गाथाओंसे प्रकट है: छत्तीसे वरिससये विकमरायस्स मरणपत्तस्स । सोरठू बलहीए उप्पएणो सेवडो संघो ॥११॥ पंचसए छव्वीसे विक्कमरायस्स मरणपत्तस्स । दक्षिणमहुराजादो दाविडसंघो महामोहो ॥२८॥ सत्तमाए तेवराणे विकमरायस्स मरणपत्तस्स । दियडे वरगामे कठ्ठो संघो मुणेयव्वो ॥ ३८ ॥ विक्रमसंवत्के उल्लेखको लिये हा जितने ग्रन्थ अभी तक उपलब्ध हुए हैं उनमें, जहाँ तक मुझे मालूम है, मबसे प्राचीन ग्रन्थ यही है। इससे पहले धनपालकी पाइपलच्छी नाममाला' (वि० सं०१०१६ ) और उससे भी पहले अमितगतिका 'सुभाषितरत्नसंदोह' ग्रन्थ पुरातत्त्वज्ञों-द्वारा प्राचीन माना जाता था।
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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