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________________ सयोग- केवली कहलाते है । आयु के अंतिम कुछ क्षणो में जब इन क्रियाओ का त्याग करके योग-निरोध कर लेते है तव वे अयोग- केवली कहलाते है। तीर्थकर - केवली, सातिशय- केवली, मूक-केवली, उपसर्गकेवली, अन्तकृत - केवली और सामान्य केवली - ऐसे केवली के छह भेद है। केशलौंच - जीवन पर्यन्त निश्चित अवधि के उपरात अपने सिर, दाढी और मूछ के बालो को बिना खेद के शान्त-भाव से उखाड कर अलग कर देने की प्रतिज्ञा लेना यह साधु का केशलौच नाम का मूलगुण है । इसे अधिकतम चार महीने के अंतराल मे करना अनिवार्य है । केशलौच के दिन उपवास भी किया जाता है । कैलास पर्वत - यह तीर्थकर ऋषभदेव की निर्वाणभूमि है । चक्रवर्ती भरत ने यहा महारत्नो से निर्मित चौबीस जिनालय बनवाये थे । पाच सौ धनुष ऊची भगवान ऋषभदेव की प्रतिमा भी उन्होने यही स्थापित करायी थी । कोडाकोड़ी - एक करोड मे एक करोड का गुणा करने पर जो राशि प्राप्त होती है उसे एक कोडाकोडी या एक कोटाकोटी कहते है । कोष्ठ - बुद्धि-उत्कृष्ट धारणा ज्ञान से युक्त जो साधु गुरु के उपदेश से अनेक प्रकार के ग्रंथो मे से शब्द रूपी बीज-पदो को अपने बुद्धि रूपी कोठे मे धारण कर लेते है उनकी बुद्धि को कोष्ठ बुद्धि कहा जाता है । यह एक ऋद्धि है । जैनदर्शन पारिभाषिक कोश / 77
SR No.010043
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherKshamasagar
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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