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________________ तामस-भाव कृष्ण-लेश्या के लक्षण है। केवलज्ञान-जो सकल चराचर जगत् को दर्पण में झलकते प्रतिविव की तरह एक साथ स्पष्ट जानता है वह केवलज्ञान है। यह ज्ञान चार घातिया कर्मों के नष्ट होने पर आत्मा में उत्पन्न होता है। केवलदर्शन-समस्त आवरण का क्षय होने से जी सर्व चराचर जगत् का सामान्य प्रतिभास होता हे उसे केवल-दर्शन कहते है। केवलज्ञान ओर कंवलदर्शन क्रमश न होकर एक साथ ही होते है। केवलि-अवर्णवाद-"केवली भगवान कवलाहार करते हैं, कम्वल व भिक्षा-पात्र ग्रहण करते है उनके ज्ञान व दर्शन एक साथ न होकर क्रमश होते हे तथा वे नग्न होते हुए भी वस्त्राभूषण से आभूषित दिखाई देते हे"-इस प्रकार केवली भगवान के विषय मे मिथ्या कथन करना केवलि-अवर्णवाद है। केवलि-समुद्रघात-आयुकर्म की स्थिति अल्प ओर वेदनीय कर्म की स्थिति अधिक होने पर उसे आयु के समान करने के लिए केवली भगवान् के आत्म-प्रदेश मूल शरीर से बाहर फैलते हैं इसे केवलि-समुद्घात कहते हैं। जैसे-दूध मे उबाल आकर शात हो जाता हे उसी प्रकार यह प्रक्रिया होती है। यह समुद्घात दड, कपाट, प्रतर व लोकपूरण-इन चार अवस्थाओ मे क्रमश पूर्ण होता है। केवली-चार घातिया कर्मों के क्षय होने से जिन्हे केवलज्ञान प्राप्त हो गया है वे केवली कहलाते है। इन्हे अर्हन्त भी कहते है। केवली दो प्रकार के है-सयोग-केवली और अयोग केवली। केवली भगवान जब तक विहार और उपदेश आदि क्रियाए करते हैं तब तक 76 / जैनदर्शन पारिभाषिक कोश
SR No.010043
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherKshamasagar
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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