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________________ अयोध्या-जम्बूद्वीप मे आर्यखड के कोशल देश की एक नगरी। यह नगरी सरयू नदी के किनारे इन्द्र द्वारा प्रथम तीर्थकर आदिनाथ के पिता नाभिराय और माता मरुदेवी के लिए रची गयी थी। सुकोशल देश मे स्थित होने से इसे सुकोशला और विनीत लोगो की निवासस्थली होन से इसे विनीता भी कहा गया है। इसके सुयोजित निर्माण कौशल के कारण इसे शत्रु जीत नहीं सकते थे इसलिए इसे अयोध्या कहा गया। सुदर भवनो के निर्माण के कारण इसे साकेत भी कहा जाता था। यह नी योजन चौडी, वारह योजन लम्बी और अडतालीस योजन विस्तार वाली थी। सभी तीर्थकर सामान्यत अयोध्या मे ही जन्म लेते है परन्तु काल के प्रभाव से वर्तमान चौवीसी मे कुछ तीर्थकरो का जन्म अन्यत्र भी हुआ। अरति-जिस कर्म के उदय मे देश, काल आदि के प्रति उत्सुकता नहीं होती है उसे अरति कहते है। अरति-परीपह-जय-जो साधु विषय-भोग की सामग्री के प्रति उदासीन है, जो गीत, नृत्य वादित्र आदि से रहित अप्रिय लगने वाले शिला गुफा आदि स्थानो मे रहकर भी ध्यान अध्ययन में लीन हे और देखे, सुने, अनुभव मे आए भोगी का स्मरण आने पर भी समता भाव रखते है उनक यह अरति-परीषह-जय हे। अरनाय-अठारहव तीर्थकर एव सातवे चक्रवर्ती। सोमवशी राजा सुदर्शन और रानी मित्रसेना के यहा जन्म लिया। इनकी आयु चौरासी हजार वर्ष थी। शरीर तीस धनुष ऊचा और स्वर्ण के समान आभा वाला था। चक्रवर्ती होने के कारण इनकं छयानवे हजार रानिया और जनदर्शन पारिभाषिक कौश, 25
SR No.010043
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherKshamasagar
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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