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________________ नित्य पूजा-प्रतिदिन जिनालय में गद्य पुष्पादि सामग्री के द्वारा भक्ति भाव से जिनेन्द्र भगवान की पूजा करना नित्य पूजा या सदार्चन कहलाता है। निदान - 'मुझे भविष्य मे इस वस्तु की प्राप्ति हो' - ऐसा सकल्प करना निदान कहलाता है । यह तीन प्रकार का है- प्रशस्त, अप्रशस्त और भोगकृत । सयम की साधना के लिए परलोक मे उत्तम शरीर, दृढ परिणाम और योग्य सामग्री प्राप्त हो ऐसी भावना रखना प्रशस्त निदान हे । अभिमानवश उत्तम कुल, वंश या उत्तम पदवी की कामना करना अप्रशस्त निदान है अथवा क्रोधित होकर मरण के समय शत्रु के वध की इच्छा करना अप्रशस्त निदान है। परलोक मे भोग-विलास की उत्तम सामग्री मिले, ऐसी आकाक्षा करना भोगकृत-निदान है। निदान - आर्तध्यान- विशेष प्रीतिवश या तीव्र कामादि वासना से प्रेरित होकर त्याग-तपस्या के फलस्वरूप परलोक मे इन्द्रिय-सुख मिले, ऐसी आकाक्षा निरन्तर करना निदान नाम का आर्तध्यान है। इसमे परलोक सबधी इन्द्रिय-सुख की प्राप्ति के लिए सतत चिन्ता बनी रहती है। यह आर्तध्यान देशव्रती श्रावक की अवस्था तक ही सभव है। मुनिजनो को यह आर्तध्यान नहीं होता। 2 निदान - शल्य- देखे सुने और अनुभव मे आए हुए भोगी मे निरतर चित्त को लगाए रखना निदान शल्य है । निद्रा-मद, खेद व परिश्रम-जन्य थकावट को दूर करने के लिए शयन या विश्राम करना निद्रा हे । निद्रा कर्म के उदय मे जीव अल्प काल सोता है ओर उठाए जाने पर जल्दी उठ जाता है । जेनदर्शन पारिभाषिक कोश / 137
SR No.010043
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherKshamasagar
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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