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________________ नाम - सामायिक- प्रिय-अप्रिय नाम आदि सुनकर हर्ष या विषाद नहीं करना यह नाम - सामायिक है । नाम - स्तव - अर्हन्त भगवान का एक हजार आठ नामो से स्तवन करना नाम-स्तव कहलाता है। नारद - कलह और युद्ध के प्रेमी होते है । एक स्थान की बात दूसरे स्थान तक पहुचाने में सिद्धहस्त होते है। जटामुकुट, कमण्डलु, यज्ञोपवीत, गेरुआ वस्त्र और वीणा आदि धारण करते है | वाल- ब्रह्मचारी होते है । धर्म कार्य मे तत्पर रहते हुए भी हिसा व कलह आदि में रुचि रखने के कारण नरकगामी होते हैं । जिनेन्द्र-भक्ति के प्रभाव से शीघ्र ही मोक्ष प्राप्त कर लेते है । नाराच सहनन - जिस कर्म के उदय से शरीर मे हड्डियों की संधिया परस्पर नाराच अर्थात् कील से जुडी होती है वह नाराच सहनन नामकर्म है। नारायण - अपने पूर्वभव में जो जीव रत्नत्रय की आराधना करके विशिष्ट पुण्य का सचय करता है लेकिन लोभवश आगामी भोगो की आकाक्षा रूप निदान करके स्वर्ग में उत्पन्न होता है और वहा से च्युत होकर मनुष्यो मे तीन खण्ड राज्य के अधिपति के रूप मे उत्पन्न होता है । यह तीन खण्ड राज्य का स्वामी ही नारायण कहलाता है । नारायण के चक्र, गदा, खड्ग, शक्ति, धनुष, शख ओर महामणि- ये सात रत्न ओर अपार वेभव होता है। एक उत्सर्पिणी या अवसर्पिणी काल में नौ नारायण होते हे । नारायण वलभद्र के छोटे भाई होते है । हिसा का समर्थन करने से नरक जाते हे लेकिन भव्य होने के कारण शीघ्र जेनदर्शन पारिभाषिक कोश / 135
SR No.010043
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherKshamasagar
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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