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________________ ४८ हिन्दी-जैन साहित्य-परिशीलन सवत् १८२० मे चैनसुखने शतश्लोकी टीका और इनसे पहले दीपचन्दने बालतन्त्र भाषा वचनिका लिखी। इन अन्योंका गद्य ढूँढारी भाषा का है और शैली भी इसी भाषाकी है | वाक्योके गठनमें शिथिलता है। उन्नीसवीं शतीके मध्यभागमे 'अबउचरित' नामक भाषा ग्रन्थ अमरकल्याणने लिखा । इनके गद्यपर अपभ्रश भाषाका स्पष्ट प्रभाव है, कही-कही तो वाक्यप्रणाली और शब्द योजना अपभ्रंशकी ही है। किसी अज्ञात लेखकका 'जम्बू कथा' अन्य भी उपलब्ध है। इसकी गद्य रचना पुरानी हूँढारी भाषामे है। छोटे-छोटे वाक्योंमें विषयकी व्यजना स्पष्ट रूपसे हुई है । शैलीमें जीवटपना है । संस्कृतके तत्सम शब्दों का प्रयोग खुलकर किया है। सवत् १८५८ मे ज्ञानानन्दने श्रावकाचार लिखा । इनका गद्य बहुत ही व्यवस्थित और विकासोन्मुखी है। नमूना निम्न है "सर्व जगवकी सामग्री चैतन्य सुभाष बिना जडत्व सुभावमें धरे फीकी, जैसे लून विना मलौनी रोटी फीकी । तीसो ऐसे ग्यानी पुरुष कौन है सो ज्ञानामृत के छोढ उपाधीक आकुलतासहित दुषने आचरें कदाचित न आचरै।" उन्नीसवी शताब्दीमें ही धर्मदासने इष्टोपदेश-टीका लिखी। इनका गद्य खडी बोलीका है। विभक्तियों पुरानी हिन्दीकी हैं, तथा उनपर राजस्थानी और ब्रजभाषाका पूरा प्रभाव है। भाषा साफ सुथरी और व्यवस्थित है । नमूना निम्न है "जैसे जोगका उपादान जोग है वा धतुराका उपादान धतुरा है मानका उपादान आन है अर्थात् धतुराके आम नहीं लागै भर आम्रके धतुरा नाही लागै, वैसैही आरमाके आत्माकी प्राप्ती सम्भव है। प्रश्नप्राप्तकी प्राप्ती कोण दृष्टान्त करि सम्भवै सो कहो । उत्तर जैसे कंटमें मोती माला प्राप्त है भर भरमसै भूलिकरि कहके मेरी मोतीकी माला गुम गई-मेरी मोर्चे प्राप्ती कैसे होवै।"
SR No.010039
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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