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________________ आत्मकथा -काव्य ४९ १९ वीं शताब्दीमे ही स्वनामधन्य महापण्डित टोडरमलका जन्म हुआ । इन्होंने अपनी अप्रतिम प्रतिभा द्वारा जैन सिद्धान्तके श्रष्ठतम ग्रन्थ गोम्मटसार, लब्धिसार, क्षपणसार, त्रिलोकसार, आत्मानुशासन आदि अन्थोका हिन्दी गद्यमे अनुवाद किया। अनुवादके अतिरिक्त ढूँढारी भाषामे मोक्षमार्गप्रकाशकी रचना की । यह मौलिक ग्रन्थ विपयकी दृष्टिसे तो महत्त्वपूर्ण है ही, पर भापाकी दृष्टिसे भी इसका अधिक महत्त्व है । ढूँढारी भाषा होनेपर भी गद्यके प्रवाहमे कुछ कमी नहीं आने पायी है तथा ऊँचेसे ऊँचे भावोकी अभिव्यञ्जना भी सुन्दर हुई है । भाव व्यक्त करनेमे भाषा सशक्त है, शैथिल्य बिल्कुल ही नहीं है । गद्यका नमूना निम्न प्रकार है "बहुरि मायाका उदय होतें कोई पदार्थको इष्ट मानि नाना प्रकार छलनिकर ताकी सिद्धि किया चाहें; रत्न सुवर्णादिक अचेतन पदार्थनिकी वा स्त्री दासी दासादि सचेतन पदार्थनिकी सिद्धिके अर्थि अनेक छल करै, डिगनेके अर्थि अपनी अनेक अवस्था करै वा अन्य अचेतन सचेतन पदार्थनिकी अवस्था पलटावै इत्यादि रूप छल करि अपना अभिप्राय सिद्ध किया चाहै या प्रकार मायाकी सिद्धि के अर्थि छल तो करै अर इष्टसिद्ध होना भवितव्य आधीन है, वहरि लोभका उदय होते पदार्थनिकों इष्ट मानि तिनकी प्राप्ति चाहें, वस्त्राभरण धनधान्यादि अचेतन पदार्थनिकी तृष्णा होय, बहुरि स्त्री-पुत्रादि सचेतन पदार्थनिकी तृष्णा होय, बहुरि आपकै वा अन्य सचेतन अचेतन पदार्थ के कोई परिणमन होना इष्ट मानि farst fae परिणमनरूप परिणमाया चाहै या प्रकार लोभ करि इष्ट प्राप्तिको इच्छा तौ होय अर इष्ट प्राप्ति होना भवितव्य आधीन है" । १९ वी शतके तृतीयपादमें पं० जयचन्द्रने सर्वार्थसिद्धि वचनिका [ १८६१ ], परीक्षामुख वचनिका [ १८६३ ] द्रव्यसग्रह बचनिका [ १८६३ ], स्वामिकार्त्तिकेयानुप्रेक्षा [ १८६६ ], आत्मख्याति समयसार [ १८६४ ], देवागम स्तोत्र वचनिका [ १८६६ ], अष्टपाहुड वचनिका જ
SR No.010039
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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