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________________ खण्डकाव्य राजुल्काव्यको महत्त्वपूर्ण घटनाएँ वाटिकामे नेमिकुमार और राजुलका साक्षात्कार तथा जगमर्दन हाथीसे नेमिकुमार-द्वारा राजुलकी रक्षा . एवं राजुलका विरह और उसका उत्सर्ग कविने प्रथम ___ साक्षात्कारके अनन्तर बड़े कौशलके साथ राजुलके आराध्यको विलगकर प्रेमकी भावनाको घनीभूत किया है। एक बार प्रेमिका और प्रेमी पुनः स्थायी प्रेमके बन्धनमे बंधनेके निकट पहुंचते हैं और यही प्रत्याशा राजुलको एक क्षणके लिए प्रकाश प्रदान करती है। परिस्थितिकी विषमताके कारण उसका आराध्य उसे छोड चल देता है, तो वह उत्पन्न हुए तीन भावोका अप्राकृतिक संकोच एवं दमन न कर मुग्धा बन जाती है और "हाय' कहकर धड़ामसे पृथ्वीपर गिर पड़ती है। विरहिणी राजुलकी इस अवस्थाको देखकर माता-पिता एवं दासिया कार हो जाती हैं और युक्तियो द्वारा निष्टुर प्रेमीसे विमुख करनेका प्रयत्न करती है ; पर राजुलको अपने पवित्र दृढ़ संकल्पते हटानेमे सर्वथा असमर्थ रहती है। कविने सखियोको राजुलके मुखसे क्या ही सुन्दर उत्तर दिलाया है "वे मेरे फिर मिलें मुझे, खोचूंगी कण-कण में" वियोगिनी राजुल अर्घ-विस्मृत अवत्यामे प्रलाप करती है । राजुल्की मनोदना उत्तरोत्तर बटिल होती जाती है, वह आदर्श और कामनाके झूले झूलती हुई दिखलाई पड़ती है कभी-कभी वह आत्म-विस्मृत हो जाती है-इस समय उसके हृदयमे आदर्शजन्य गौरव और प्रेमजन्य उलंठगका इन्द ही शेष रहता है तथा ग्लानि और असमर्थताके कारण वह कह उठती है अब न रही हैं सुखद वृत्तियाँ, शेष बची है मधुर स्मृतियाँ । उन्हें छिपा हस्तलमें अपना जीवन जीना होगा।
SR No.010039
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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