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________________ हिन्दी - जैनसाहित्य- परिशीलन जिससे उनका ध्यान राजुलसे हटकर उस ओर आकृष्ट हो जाता है । माली से नेमिकुमार पशुओकी करुणगाथा जानकर द्रवित हो जाते हैं। वासनाका भूत भाग जाता है और वे पशुशालामे जाकर विवाह में अभ्यागतोके भक्षणार्थ आये हुए पशुओको बन्धन मुक्तकर स्वयं चन्धन-मुक्त होनेके लिए आत्मसाधनाके निमित्त गिरनार पर्वतकी ओर प्रस्थान कर देते हैं। २६ इधर नेमिकुमारके विरक्त होकर चले जानेसे राजुलकी वेदना वढ जाती है । वह सुकुमार कलिका इस भयकर थपेडेको सहन करनेमें असमर्थ हो मूर्च्छित हो जाती है। नाना तरहसे उपचार करनेपर कुछ समय पश्चात् उसे होश आता है। माता-पिता ऑखकी पुतलीकी चेतना लौटी हुई देखकर प्रसन्न हो समझाते है कि बेटी, अन्य ठेाके सुन्दर, स्वस्थ और सम्पन्न राजकुमारसे तुम्हारा विवाह कर देंगे; नेमिकुमार तपाराधना के लिए जंगलमे गये तो जाने दो। अभी कुछ नहीं बिगड़ा है, तुम अपना प्रणय बन्धन अन्यत्र कर जीवन सार्थक करो । राजुलने रोकर उत्तर दिया- "सम्भव अन यह तात कहाँ” राजुल रो वोली वने नेमि जब मेरे औ' मैं उनकी हो ली । भी डोलू ॥ सोपूँ ; भूलूँ कैसे उन्हें प्राण अपने भी भूलूँ, खोजूँगी मैं उन्हें घनो गिरिमें किया समर्पित हृदय आज तन भी मैं जीवनका सर्वस्व और धन उनको रहे कहीं भी किन्तु सदा वे मेरे स्वामी } मैं उनका अनुकरण करूँ वन पथ अनुगामी ॥ सौपूँ ॥ इस प्रकार राजुल भारतीय शीलके पुरातन आदर्शको अपनाने के निमित्त गिरनार पर्वतपर नेमिकुमारके पास जा आर्यिका व्रत ग्रहणकर तपश्चर्यामे लीन हो आत्म-साधना करती है ।
SR No.010039
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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