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________________ ३२ हिन्दी - जैन-साहित्य-परिशीलन मात्राभवाली चौपाइयोकी अधलियोके बाद अड़तालीस मात्राओंवाले दोहे रक्खे हैं । भविसयत्तकहाकी तुकोंकी लड़ी हर एक चरणकै अन्तमें कम-से-कम प्रत्येक दो चरणमे मिलती है, उसी प्रकार जायसी और तुलसीकी भी । इसी तथ्यसे प्रभावित होकर प्रोफेसर श्री जगन्नाथराय शर्माने अपने 'अपभ्रंश-दर्पण' में लिखा है कि "हिन्दीका कौन कवि है, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूपमें अपन शके जैन- प्रबन्ध-काव्योंसे प्रभावित न हुआ हो ? चन्दसे लेकर हरिश्चन्द्र तक तो उसके ऋण भारसे दवे हैं ही, आजकलकी नई-नई काव्यपद्धतियोके उद्भावक भी विचारकर देखनेपर उसकी परिधि बहुत चाहर न मिलेंगे ।”” जायसीका पद्मावत तो भविसयत्तकहाके अनुकरणपर ही नही लिखा गया, अपितु उसका कथानक भी भविसयन्तकहासे मिलता-जुलता है । यदि I भविसयत्तकहाके पात्रोंके नामोंको बदल ले तो कथाका अवशेप मानचित्र पद्मावत प्रवन्धके मानचित्रसे ज्यो-का-त्यो मिलेगा । जिस प्रकारका प्रेम. चित्रण भविसयत्तकद्दाम है, ठीक उसी प्रकारका रत्नसेन - पद्मावतीकी कथामे भी। दोनों कृतियोकी कथावस्तुमे बहुत साम्य है । सिंगलगढका उल्लेख दोनों है | अलाउद्दीन द्वारा रानी पद्मिनीके अपहरणका प्रयत्न अस्वाभाविक लगता है, भले ही वह ऐतिहासिक हो, किन्तु भविष्यदत्तकी स्त्रीका अपहरण उसके भाई बन्धुदत्त द्वारा अधिक स्वाभाविक है । पद्मावतमें जायसीने यत्र-तत्र ही आध्यात्मिक सकैत रक्खे हैं, किन्तु भविसयत्तकहाको धार्मिक रूप ही दिया गया है। जायसीने पद्मिनीकी निराशा दिखलाकर मृत्यु दिखायी है, पर भविसयत्तकहामै बन्धुदत्तने भविष्यदत्तकी स्त्रीका अपहरण किया है, अतः घटनाचक्र के अनुकूल होनेपर भविष्यदत्तको अपनी स्त्री वापिस मिल जाती है और बन्धुदत्त दण्ड पाता है । पद्मावतकी वर्णन अंशो मिलती-जुलती है। भी पउमचरिउ और भविसयत्तकहासे बहुत बन्धुदत्तकी समुद्रयात्रा रत्नसेनकी समुद्रयात्रासे १ - देखें अपभ्रंग दर्पण पृष्ठ २५ ।
SR No.010038
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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