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________________ पुरातन काव्य-साहित्य तथा नखशिखवर्णन पद्मावतके नखशिखवर्णनसे भावमे ही नहीं, किन्तु शब्दोमे भी साम्य रखता है। उदाहरणार्थ वन्धुदत्तकी समुद्रयात्राकै कुछ पद्य उद्धृत किये जाते है। इन उद्धृत-पद्योकी पद्मावतके पद्योंके साथ तुलना करनेसे स्पष्ट है कि भविसयत्तकहाके रचयिता धनपालकी शैलीका जायसीने कितना अनुकरण किया है-- णिज्जावय वयणुज्जु अमुहह, किरववइँ गणं भडॉ। सचलह रयणायरहो जलि, खरपवहाणय-धय-वण ॥ दिढ-बधई जिह मल्लर-गणाई । जिल्लोहइ जिह मुणिवर-मणा: । णिन्मिण्ण: जिह सजण-हियाइ । मकियस्थ जिह दुजण-कियाई ॥ वहण: वहति जलहरसहि । दुचरि अत्याहि महा समुहि ॥ लेंचंतह दीवंतर-थलाइ । पिसंति विविह कोऊ हलाई । इय लीलई वच्चंताह ताहँ। उच्छाह-सन्ति-विक्कम पराह । दुप्पवणे घणवरुबर-समीवे। वहण लांग: मयणाय दीवे ॥ कल्लोल-बोल-जलरल वमाले । असगाह-गाह गहणंतराले ॥ तीरंदरेज सघष्ट पोय । उत्तरिय तरिव पमुहाइ लोय ॥ वयणु सुणिवि णायर जगहु, न सिरि वजदंड पडिक । वोहित्थई लेवि दुरास खलु, गहिर महासमुहि चडिऊ ॥ -भविसयचकहा पृष्ठ २१ सायर तरै हिये सत पूरा । जो जिउ सत, कायर पुनि सूरा ॥ तेइ सत बोहित कुरी चलाए । तेइ सत पवन पंख जनु लाए॥ सत साथी, सत कर संसारू । सत खेह लेह लावै पारू। सत्त ताक सब आगू पाछु । जहें जहँ मगर मच्छ औ काछू ॥ उठै लहरि जनु ठाढ़ पहारा । चढ़े सरग औ परै पतारा ॥ -जायसी ग्रंथावली पृ० ६४ १-स्वयंभूके पउमचरिउका रचनाकाल ई० सन् ७९० । Aar
SR No.010038
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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