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________________ दश-वैकालिक सूत्र | पृथ्वी जल तेज: वायु वनस्पत्ति आर । नस नामे छय जीव आछे नानाकार ॥ जोवहत्या महापाप हयेछे लिखित | कि उपाये रक्षा पाय जीव शत शत ॥ सुगति दुर्गति साधु केन भुज भवे । केमने मुकति पाय तपस्या प्रभावे ॥४ अध्ययन पश्चमेर नाम पिण्डैपणा । उद्दशद्वयेते उहा हयेछे योजना | भिक्षुकेर भिक्षाविधि वर्षाकाले स्थिति । विश्रान्ति चिन्तन आर भोजनेर रीति ।। प्रथम उद्देशे उहा भाछे सुविस्तार | याहा द्वारा साधुदेर हवे उपकार || द्वितीय उद्देश कथा वलिव एखन । मनोयोग सहकारे करिवे धर्मकाय जीवगण करिते कि उपाये लभे साधु पानीय भोजन ॥ भिक्षार ग्रहणकाले किरूपे थाकिवे । किरूपे आहा साधु ग्रहण करिवे ॥ क्रोध पूजा कि प्रकारे करिवे वर्जन । कि कि खाद्य करिवेना भिक्षार्थी ग्रहण || भिक्षाला कालाकाले किरूप विचार । आचार्य भिक्षार्थी हले किहवे भिक्षार || इत्यादि विषय आछे वर्णित इहाते । चेष्टित हइवे उहा पालन करिते ॥ ५ श्रवण || रक्षण | By
SR No.010036
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnibhushan Bhattacharya
PublisherParshwanath Jain Library Jaipur
Publication Year
Total Pages207
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size5 MB
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