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________________ १५० दश-वैकालिक सूत्र | नवम अध्ययन | चतुर्थ उद्देश । आदिष्ट शुश्रूषा हय प्रथम स्थानीय । सम्प्रतिपादन उहा कथित द्वितीय ॥ श्रुताराधना आर आत्मोत्कर्ष सम्पादन । तृतीय चतुर्थ वलि कहेन सज्जन ॥ निम्नोद्धृत श्लोके उहा हय उल्लिखित । विनय समाधि फल उहाते कथित ॥ विनय समाधि द्वारा मोक्षार्थी भिक्षुक । हयेन गुरुर आज्ञा शुनिते इच्छुक ॥ उहार मम्र्म्मार्थ साधु बुझिया तखन । श्रुतलाभे यथारीति करि आराधन ॥ विनीत साधु आमि एइरूप ज्ञान । ना करिया साधु छोड़े निज अभिमान ॥२ श्रुत समाधिर भेद चारिटि प्रकार । निम्ने उहा यथारीति हइवे प्रचार ॥ श्रुतवाक्य अध्ययन, एकाग्र चिन्तन । स्वात्मार स्थापन धम्मै परकेओ तेमन ॥ निम्नोद्धृत श्लोके उहा विवृत्त हड़वे । साधुरा उहार तत्त्व वुझिते पारिवे ॥ अध्ययने तत्परेर ज्ञानोदय हय । ने हय सदा स्थित्तरे उदय ॥
SR No.010036
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnibhushan Bhattacharya
PublisherParshwanath Jain Library Jaipur
Publication Year
Total Pages207
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size5 MB
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