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________________ ७२ ] आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व परन्तु, अश्लील और रसीली मानकर उन्होंने इसे भी अप्रकाशित ही रखा । २१० पृष्ठों की इस हस्तलिखित पुस्तक का चार अधिकरणों में विभाजन है। 'सामान्याधिकरण' के सात परिच्छेदों में तारुण्य, पुरुषों में क्या-क्या स्त्रियों को प्रिय होता है, विवाहकाल, दाम्पत्य-संगम, इच्छानुकूल पुत्र अथवा कन्योत्पादन, अपत्य-प्रतिबन्ध और सन्तान न होने के कारण; 'वीर्याधिकरण' में तीन परिच्छेदों के अन्तर्गत वीर्य-वर्णन, ब्रह्मचर्य की हानियाँ, अतिप्रसंग की हानियाँ; 'अनिष्टविद्याधिकरण' के चार परिच्छेदों मे निषिद्ध मैथुन, हस्तमैथुन, वेश्यागमन-निषेध तथा मद्यप्राशन और 'रोगाधिकरण' के चार परिच्छेदो में अनिच्छित वीर्यपात, मूत्राघात, उपदंश एवं नपुसंकत्व का विवेचन किया गया है । इस प्रकार, तरुण-समाज के लिए उपयोगी कामकला-विषयक सारी जानकारी इस पुस्तक में बोधगम्य भाषा में प्रतिपादित हुई है। हालाँकि, इसमें अश्लीलता कहीं भी नहीं है। भारत के प्राचीन और अर्वाचीन विद्वानों तथा यूरोपीय चिन्तकों के मतों का समन्वय भी द्विवेदीजी ने अपनी इस पुस्तक में किया है। द्विवेदीजी की उपर्युक्त तीन अप्रकाशित रचनाओं के अतिरिक्त अन्य किसी कृति का पता अभी तक नहीं लगा है । अतएव, कहा जा सकता है कि उनके द्वारा लिखा गया अधिकांश साहित्य अब प्रकाश में आ गया है। __ आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी की सम्पूर्ण साहित्यिक सम्पदा की सूची को देखते हुए हम उनकी महान् लेखन-शक्ति और प्रतिभा का लोहा माने बिना नहीं रह सकते । उन्होंने साहित्य एवं साहित्येतर विषयों पर विविध विधाओं में समान गति से लेखनी चलाई और हिन्दी-भाषा के स्वरूप को परिष्कृत एवं स्थिर करने में अपना अभूतपूर्व योगदान किया । संख्या में विगुल होती हुई भी द्विवेदीजी की रचनाएँ, अपने कलापक्ष एवं साहित्यिक गौरव की दृष्टि से विशेष महत्त्व की नहीं है, इस बात को कई विद्वानों ने अनेक प्रकार से दुहराया है। आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने लिखा है : __"यह बात निर्विवाद है कि उस युग की साहित्यिक साधनाओं की अग्रगति को दृष्टि में रखकर विचार करने पर द्विवेदीजी की वक्तव्य वस्तु प्रथम श्रेणी का नहीं ठहरती। उसमे प्रचीन और नवीन, प्राच्य और पाश्चात्त्य, साहित्य और विज्ञान सब कुछ है, पर सभी ‘सेकेण्ड हैण्ड' और अनुसंकलित।"१ ___ यद्यपि गुण का महत्त्व संख्या से अधिक होता है, तथापि द्विवेदीजी ने जितनी बड़ी संख्या में साहित्य-रचना की है, उस अनुपात में लिख डालना ही एक बड़े साहस की बात है । कविता निबन्ध, समालोचना आदि सभी क्षेत्रों में उन्होंने प्रयास किये हैं। परन्तु, किसी भी क्षेत्र में उन्हें युग का सर्वश्रेष्ठ लेखक होने का गौरव नहीं मिल सका है। १. डॉ० हजारीप्रसाद द्विवेदी : "विचार और वितर्क', पृ० ७९। .
SR No.010031
Book TitleAcharya Mahavir Prasad Dwivedi Vyaktitva Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShaivya Jha
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year1977
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size26 MB
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