SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 87
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्विवेदीजी का सम्पूर्ण साहित्य [ ७३ वे स्वयं रससिद्ध कवि नहीं थे, उनकी अधिकांश पद्यकृतियाँ कविता की सीमा में नहीं आतीं। शुक्लजी की दृष्टि में वह केवल पद्य रचना की प्रणाली के प्रवर्तक हैं १ यह दशा गद्य की भी है । यदि द्विवेदीजी की गद्यरचनाएँ देखी जायँ, तो बहुत ही निराश होना पड़ेगा । उनकी कृतियों में कई अनुवाद हैं, कुछ दूसरों की रचनाओं के सरल विश्लेषण हैं, कुछ सामान्य आलोचनात्मक निबन्ध हैं और शेष विविध विषयों पर आश्रित निबन्ध । परन्तु, उनकी रचनाओं में जो वर्णनशैली का एक अद्भुत प्रवाह है, हृदय को आकृष्ट और विमुग्ध करनेवाली जो कला है, वह औरों की सचेतन कला और संगीतपूर्ण भाषा से अधिक प्रभावपूर्ण और सुन्दर है । और, यही द्विवेदीजी की माहित्यिक उपलब्धियों का विशेष माधुर्य है । भाषा-शैली की सरलता एवं प्रभावोत्पादक शक्ति के बल पर ही वे हिन्दी भाषा और साहित्य के इतिहास में अपना युगप्रवर्तक व्यक्तित्व निर्मित कर सके। उनकी इस साहित्यिक महत्ता का प्रतिपादन डॉ० शंकरदयाल चौऋषि ने इन शब्दों में किया है : "....सरस्वती के अनन्य उपासक इस महावीर ने अपनी सतत साधना के द्वारा कुछ वर्षो में वह कार्य कर दिखाया, जो किमी भी अन्य भाषा के इतिहास में बेमिसाल और बेजोड़ है । उन्होंने उस समय पुकारी जानेवाली 'स्टुपिड' हिन्दी को संस्कृत एवं परिष्कृत करने का बीड़ा उठाया और महात्मा तुलसीदास की सार्वभौम चुनौती 'मूरख हृदय न चेत जो गुरु मिलिहि विरंचि सम' स्वीकार कर अपने उद्देश्य में सफल हुए । मूर्ख हृदय को संस्कृत करने में जहाँ सरस्वती के स्वामी ब्रह्माजी असफल होते हैं, वहाँ सरस्वती के सेवक ने अपनी एकनिष्ठ सतत सेवा से सफलता प्राप्त कर ली । वे निस्सन्देह, हिन्दी के प्रथम आचार्य हुए, जिन्होंने भाषा को अनुशासित एवं व्यवस्थित करने में अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की । उन्होंने न केवल साहित्य का निर्माण किया, वरन् साहित्यकारों का भी सर्जन किया । २ विश्व - साहित्य में साहित्यकारों की पर्याप्त संख्या है । परन्तु, जो भाषा की सुदृढ नींव पर पथ का निर्माण करते हैं, समर्थ यात्रियों को उस पथ पर परिचालित करते हैं एवं हृदय को कठोर बनाकर सुन्दर, किन्तु हानिकारक झाड़ी को इस यात्रापथ से अलग करते हैं, ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम है । आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी के रूप में हिन्दी - संसार को एक ऐसा ही साहित्यकार मिला था । उनकी कल्पना व्यक्ति नहीं, एक संस्था के रूप में की जा सकती है । जिस यान्त्रिक गति और शक्ति से १. आचार्य रामचन्द्र शुक्ल : 'हिन्दी साहित्य का इतिहास', पृ० १०३ । २. डॉ० शंकरदयाल चौऋषि : 'द्विवेदी युग की हिन्दी गद्यशैलियों का अध्ययन', पृ० ४५३ ।
SR No.010031
Book TitleAcharya Mahavir Prasad Dwivedi Vyaktitva Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShaivya Jha
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year1977
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy