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________________ १२ ] आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदीजी : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व किये। इस कार्य के लिए बहुतेरे आन्दोलन हुए और कई संस्थाओं का जन्म हुआ। इस कर्म मे स्वामी दयानन्द द्वारा संस्थापित आर्यसमाज (सन् १८७५ ई० ) का सर्वाधिक महत्त्व माना जा सकता है। आर्यसमाज की स्थापना के पूर्व हिन्दू-समाज मुख्य रूप से दो वर्गों में विभक्त हो चुका था। एक वर्ग हिन्दू-पुराणशास्त्र एवं अन्यान्य धार्मिक ग्रन्थों का अन्धभक्त था और जो वर्तमान युग की परिवर्तनशील परिस्थितियों के प्रति अनासक्त था। दूसरा वर्ग पाश्चात्त्य सभ्यता के सागर में गोते लगाकर इस परिणाम पर पहुंच चुका था कि हमारी प्राचीन सामाजिक एवं धार्मिक प्रवृत्तियाँ एवं रीतियाँ सड़ गई है और इनमे आमूल परिवर्तन करने से ही देश का स्वास्थ्य ठीक रह सकता है। रूढिवादी और पराम्पराभक्तों के बीच नवीन एवं प्राचीन का समन्वय स्थापित करने का किचित् प्रयत्न आर्यसमाज ने किया। आर्यसमाज का मुख्य उद्देश्य भारत का सांस्कृतिक अध्युत्थान था एव उसका आधार वैदिक था। वैदिक संस्कृति तथा प्रकारान्तर से भारत के स्वर्णिम अतीत का गुणगान कर आर्यसमाज ने भारतीय मांस्कृतिक चेतना को एक नया मोड़ दिया। दूसरी ओर आंशिक पाश्चात्त्य प्रभाव के कारण ब्रह्मसमाज, थियोसोफिकल सोसाइटी, रामकृष्ण मिशन आदि संस्थाओं ने भी अस्पृश्यता एवं धार्मिक विभेद की रेखा मिटाकर, एक सत्र में सम्पूर्ण देश को बाँधकर यहाँ की सांस्कृतिक एकता को संस्थापित करने का प्रयत्न किया । सांस्कृतिक ऐक्य एवं राष्ट्रीयता की यह लहर मुख्य रूप से हिन्द-धार्मिकता से आक्रान्त थी। भारत में धार्मिक एवं सांस्कृतिक पुनर्जागरण के इस काल में ब्रिटिश-शासन के प्रभाव-स्वरूप पाश्चात्त्य संस्कृति का भी गहरा प्रभाव अनजीवन पर पड़ रहा था। द्विवेदी-युगीन भारतीय समाज पर पड़े पाश्चात्त्य प्रभाव की चर्चा करते हुए डॉ० उर्मिला गुप्ता ने लिखा है : "प्राचीन अन्धविश्वासी दृष्टिकोण समाप्त हो गया तथा भारतवासियों के रहनसहन और वेश-भूषा में परिवर्तन आ गया। इस युग मे प्राचीन मान्यताएँ ही समाप्त हो रही थी, परन्तु नवीन मान्यताओं को जनता पूरी तरह अपना नही पा रही थी, इसलिए संस्कृति में एक प्रकार की अव्यवस्था-सी फैली हुई थी। इस सांस्कृतिक विशृखलता के बीच आर्यसमाज आदि द्वारा भारत के गौरवमय अतीत के गुणगान का जो शंखनाद किया गया, उससे इस देश की सांस्कृतिक चेतना एवं साहित्यिक गतिविधि को एक स्पष्ट मार्ग दीख पड़ा। यह मार्ग था अतीत के आधार पर राष्ट्रीय एवं सांस्कृतिक चेतना को पनपाने का। द्विवेदी-युग के सभी १. डॉ० उर्मिला गुप्ता : 'हिन्दी-कथासाहित्य के विकास में महिलाओं का योग', पृ० १९।
SR No.010031
Book TitleAcharya Mahavir Prasad Dwivedi Vyaktitva Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShaivya Jha
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year1977
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size26 MB
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