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________________ १८२ ] आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व जिधर देखिए, उधर कवि - ही कवि । जहाँ देखिए, वहाँ कविता - ही कविता ।" निःसन्देह, जहाँ इस कथन की यथातथ्यता मे सन्देह नही, वहाँ इसमें कुछ अतिशयोक्ति भी दीख पड़ती है, जिसे आचार्य द्विवेदी ने यहाँ कविता की अभिधा प्रदान की है, वह वस्तुतः तुकबन्दी - मात्र थी और जिसे उन्होंने कवि की संज्ञा प्रदान की है, वह वस्तुतः तुक बैठानेवाला 'अकवि' ही रहा होगा । फिर भी, उस युग में ऐसे भी कवि थे, जिनकी रचनाएँ किसी भी साहित्य के लिए गौरव का विषय बन सकती है और जिन्हें रचकर कोई भी कवि गौरवान्वित हो सकता है, उस युग में ही छायावाद का ऐतिहासिक अवतरण हुआ था और उस युग के साहित्याकाश पर ही छायावाद के मूर्धन्य कलाकार अपनी देदीप्यमान रचनाओं को लेकर प्रकट हुए थे । द्विवेदीजी की उपर्युक्त पंक्तियाँ इन कवियों को भी उसी श्रेणी में समेट लेती है, जिनमे हम तुकबन्दी करनेवाले कवि - नामधारी व्यक्ति को रखते हैं । कवि बनने के लिए जिन सापेक्ष साधनों की अपेक्षा थी और रहेगी, वे नवोदित कवियों मे अल्पाधिक मात्रा में वर्त्तमान थे । पन्त, निराला और महादेवी मे प्रतिभा थी और साथ ही कविसुलभ संवेदनशीलता भी, उनमें अनुभूति की तरलता और भावाभिव्यक्ति मे यथोचित नैपुण्य उपलब्ध था । परन्तु, जिन अनुभूतियो में उनकी कविताएँ आबद्ध थी, वे अनुभूतियाँ कुछ रहस्यात्मक, कुछ दुर्बोध और कुछ विचित्र होती थीं । द्विवेदीजी सरलता और सम्प्रेषणीयता के पक्षपोषक थे और दुरूहता एवं क्लिष्टता इस कारण सन्दिग्ध थी कि उनके कारण कविता की प्रषणीयता लुप्त हो जाती है। जिस कविता को अधिकाधिक पाठक न समझ पायें, वह, द्विवेदीजी की दृष्टि में अवर समझी जायगी। इसका सीधा अर्थ यह है कि कविता सम्प्रेषणीय हो, कवि प्रतिभासम्पन्न व्यक्ति हो और साथ ही सहृदय भी । द्विवेदीजी ने कवि बनने के लिए जिन सापेक्ष साधनों का उल्लेख किया है, उनका आधार क्षेमेन्द्र का 'कविकण्ठाभरण' नामक ग्रन्थ है । चूँकि क्षेमेन्द्र स्वयं भी कवि थे, इसलिए उनकी एतद्विषयक मान्यताओं में पर्याप्त प्रमाणिकता दीख पड़ती है । क्षेमेन्द्र की मान्यताओं से द्विवेदीजी पूर्णतया सहमत हैं और चाहते हैं कि हिन्दी के कवि क्षेमेन्द्र की बातों पर ध्यान दें : १. कवित्व - शक्ति २. शिक्षा ३. चमत्कारोत्पादन ४. गुणदोष-ज्ञान ५. परिचय - चारुता १. कवित्व शक्ति : कवि के लिए इस शक्ति की उपयोगिता स्वयंसिद्ध है । इसे भी भारतीय काव्यशास्त्र में कारयित्री प्रतिभा की संज्ञा दी गई है और इसके सम्बन्ध १. रसज्ञरंजन, पृ० २९ ॥
SR No.010031
Book TitleAcharya Mahavir Prasad Dwivedi Vyaktitva Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShaivya Jha
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year1977
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size26 MB
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