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________________ परिशिष्ट-नम्बर १. देलवाडा-अर्बुदादेवीसे करीव एक माइल उत्तर-पूर्व में देलवाडा नामक गांव है ।जो देवालयोंके लिये ही प्रसिद्ध है. यहांके मन्दिरोंमेंसे आदिनाथ और नेमिनाथके जैनमन्दिर कारीगरीकी उत्तमताकेलिये संसारभरमें अनुपम हैं। ये दोनों मन्दिर संगमर्मरके बने हुए हैं. इनमेंभी पुराना और कारीगरीकी दृष्टिसे कुछ अधिक सुन्दर विमलशाह नामक पोरवाड महाजनका बनाया हुआ विमलवसही नामका आदिनाथका जैनमन्दिर है. जो वि० सं. १०८८ ई. स. १०३१ । में समाप्त हुआ था. इसमें करोडों रुपये लगेहोंगे. आबूपर परमार वंशका राजा धंधुका उस समय राज्य करता था. वह गुजरातके सोलंकी राजा भीमदेवका सामंतहो, ऐसा अनुमान होता है. उसके और भीमदेवके बीच अनबन होजाने पर वह मालवाके परमार राजा भोजदेवके पास चला गया जो उस समय प्रसिद्ध चित्तौडके किले (मेवाडमें) पर रहता था. भीमदेवने विमलशाहको अपनी तरफसे दंडनायक ( सेनापति ) नियत कर आबूपर भेजदिया-जिसने अपनी बुद्धिमानीसे धंधुकको चित्तौडसे बुलाया और उसीके द्वारा भीमदेवको प्रसन्न करवा दिया. फिर धंधुकसे जमीन लेकर उसने यह मन्दिर बनवाया. इसमें मुख्य मन्दिर के सामने विशाल सभामंडप है और चारोंतरफ छोटे २ कई एक जिनालय हैं. इस मन्दिरमें मुख्य मूर्ति ऋषभदेव (आदिनाथ) आवु० ५
SR No.010030
Book TitleAbu Jain Mandiro ke Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1922
Total Pages131
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size5 MB
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