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________________ ६४ आबुके जैनमन्दिरोंसे है । जिसमे विमलमंत्रीका और उनके बनवाए आदीश्वरजीके मन्दिरका वर्णन होचुका है । अब 'प्रसंगोपात्त वस्तुपाल तेजपालका संक्षिप्त जीवन कहके उनके कराए श्रीनेमिचैत्यका वर्णन करना आवश्यक है। _श्रीनरचन्द्रसूरिने जब देखा कि उत्तर बंगालसे लेकर दक्षिण सागर तट तकके सर्व उत्तमस्थानोंका इन भाग्यवानोने उद्धार कराके उन सबको तो ठीक ठीक रोशन किया है, अब सिर्फ एक आवुतीर्थ ही वाकी रहगया है कि जिसपर इन भाग्यवानोंने अभीतक कोई देवस्थान नहीं बनवाया, और बनवाना जरूरीभी है, क्योंकि अवुदाचल (आवुपर्वत ) भी कैलाशका लघु वान्धव है । यह सोचकर उन्होने मंत्रियोंके आगे आवुपर्वतका माहात्म्य कहना आरंभ किया। __ वस्तुपाल तेजपालने खुद वहां जाकर मौका देखा, आबुकी तलाटीपर बसी हुई चन्द्रावती नगरीके राजाने उनकी बडी इज्जत की, और सहायता दी । इस पर उन्होने वहां मन्दिर बनवाने शुरु किये । शोभन नामका एक मिस्तरी बडा कार्य कुशल उसवक्तका उत्तमोत्तम आल्लादर्जेका सूत्रधार गिनाजाता था, उसको मन्दिर बनवानेका काम सौंपागया। उसने २००० आदमियोंको अपने हाथ नीचे रखकर श्रीनेमिचैत्यको तयार किया। वि. संवत् १२८४ फाल्गुन मासमें इस चैत्यकी प्रतिष्ठा हुई। विशेष हाल वस्तुपाल चरित्रसे जाननेकी स्मृति दिलाकर इस निवन्धको समाप्त किया जाता है। ॥श्रीरस्तु॥ १ कुछ संक्षिप्त हाल परिशिष्ट नं. १-२ से जाना जा सकता है। - - -
SR No.010030
Book TitleAbu Jain Mandiro ke Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1922
Total Pages131
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size5 MB
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