SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 51
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कहा मैं जैन श्रावक हुँ मांसमदिरा न खाता हुं न खानेवालेको अच्छा समझता हुँ । क्षेत्रपाल बालिनाहने कहा मैं तुमारा कार्य न होने दूंगा। विमलने कहा मेरे कार्यमे विघ्नके करनेवालेकों मैं समूल नष्ट करनेको समर्थ हुँ ! अगर तुम कुछ बाहु वल रखते हो तो मेरे सामने शस्त्र उठाओ। यह कहकर विमलने अपनी तलवार उठाई । बालिनाह कांपने लगा । हाथ जोडकर बोला-सत्त्ववान् ! मैं तुमारा अनुचर हुँ । जैसे आज्ञा करोंगे करनेको तयार हुँ । और आजसे आपके कार्यमे विघ्न न करूंगा, मेरे लायक किसीभी कार्यके उपस्थित होते मैं हाजर होनेकी नम्र प्रार्थना करके आपकी आज्ञा चाहता हूं। विमलराजनेभी शिष्टाचारपूर्वक उस देवको विसर्जन किया । और निर्विघ्नपने उस निर्धारित कार्यको शुरु किया। चैत्यकी समाप्तिकी खबर लानेवालेको बहुत कुछ दान दिया। नगर देशमें वधाइयां बांटी गई। चैत्यके तयार होनेके बाद कारीगरोंको आज्ञा की गई कि अब एक एक टुकडा पाषाणका कोतरकर निकालनेवालेको एक एक सोनामोहर दी जायगी । इस लोभसे उन शिल्पियोंने ऐसी ऐसी कोरणी की कि जो जिहाके अगोचर हो । दुनियाका विश्वास है कि"सूर्यको कोई दीवा नही दिखाता" कहते हैं संसारके सर्व दृश्योंमे जैसे ताजबीवीका रोजा दर्शनीय पदार्थ है वैसे आवुके जैनमंदिर हिंदुस्थानकी कारीगिरीका खजाना है। चल्कि ताजवीवी और आबु दोनोंके देखनेवालोंका अभिप्राय आबु०३
SR No.010030
Book TitleAbu Jain Mandiro ke Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1922
Total Pages131
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy