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________________ लेंगे। विमलदेव समर्थभी था, स्वामीभी था, तथापि उसने वीर परमात्माके वचनोंको याद करके शान्ति पकडली । प्रभुका फरमान है कि, जिनचैत्य जहां बनवाना हो वहां की जमीनके मालिकको अच्छी तरह खुश करना । ताकि उसकी दुराशीश अपने कार्यको बिगाडे नही। . विमलने पूछा तुम यह जमीन कैसे देना चाहते हो । ब्राह्मणोने कहा "जितनी जगह तुमकों चाहिये उतनीपर सोनहीये बिछाकर दो तो हम प्रसन्न है"। विमलराजने अनर्गल सोनामोहरें देकर बहुतसी जागा रोकनेका मनसूवा किया, परंतु उन लोगोंने ज्यादा जगह धन लेके देनाभी स्वीकार न किया । विमलशाहने समझा कि प्रासादके लिये तो इतनी भूमि काफी है । अब नाहक इन लोगोंसे वैर वैमनस्य क्यों करना । यह सोचकर इतनीही जागामे प्रासादकी नीव डाल दी। परंतु नया उपद्रव यह खडा हुआ कि, दिनभरकी चिनी हुई इमारत रातको गिर जाने लगी। विमलराजने अंबिकासे उसका हेतु पूछा तो माताने कहा "वालीनाह" नामक देव इस भूमिका स्वामी है उसको फल फूल पकान्नका बलि दो। अगर वह अभक्ष्य चीज मांगे तो तलवार उठाकर उसे डराना । वह भाग जायगा तुमारा सितारा तेज है सामने नही ठहर सकेगा। अंविकाके वचनसे बालिनाहका आराधन करके विमलने सामने बुलाया, वालिनाहने मांसमदिरा मांगा । विमलने
SR No.010030
Book TitleAbu Jain Mandiro ke Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1922
Total Pages131
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size5 MB
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