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________________ तब उसके साथ उसका सैन्य मौजूद था । विमलमंत्रीने परमारको समाचार कहलाया कि तुम गुर्जरपतिकी आज्ञाको मान देकर उनकी आज्ञा उठाओ अन्यथा हमसे युद्ध करो। धन्धुकने आज्ञा माननेसे इन्कार किया । विमलमंत्रीने लडाईमे उसको जीता और अपने स्वामी भीमदेवकी ध्वजा चढाई । धन्धुक परमार मंत्रीके पांओंमे आगिरा और विमलकुमारको अपना खामी मानकर उसकी सत्तामे रहने लगा। विमलकुमारके चले जानेपर पाटणकी प्रजा उसमेभी खास कर जैनजातिके मनपर बडा आघात हुआ । पाटणके सकल जैनसंघने एकत्र होकर ठहराव किया कि "धार्मिक क्रियाओंकी ईयाओंके कारण ब्राह्मणोंके वितथ भापणको सुनकर राजाने अन्याय किया है, अपने सबको चाहिये कि राजासे इस बातकी अरज गुजार। अगर राजा अपनी भूलको स्वीकार कर विमलकुमारको सर्वथा निर्दोष ठहराकर पीछे बुलानेका फरमान भेजे तो ठीक, नहीं तो अपने सब (आबालवृद्ध) ने पाटणको छोड चन्द्रावती चले जाना।" ॥ एक सूक्ष्मपर्यालोचन ॥ एक खास घटनाका उल्लेख करना रह जाता है मगर यह बात है बडे उपयोगकी, अपने लोगोंमे साधारण कहावत है कि-"कपट वहां चपट" भीमदेवके पास एक उत्तम राजपुत्र रहता था जिसका महाराज बडा मान रखते थे, बल्कि उसको इस गुर्जरपतिके हाथसे "सामन्त" का पद मिला हुआ था।
SR No.010030
Book TitleAbu Jain Mandiro ke Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1922
Total Pages131
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size5 MB
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